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________________ १६२ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कामदेव रूप होत भूपन को भूप होत, आनंद को कूप होत देवन के थोक में। रिध होत सिध होत और हूं समृद्ध होत, करुणा की बुद्धि होत रहे नाहि लोक में। कहे मनरंग सांच जात के करैयन को एती बात होत सबै फलक की नोक में। वृंदावन चौबीसी पाठ के साथ मनरंग चौबीसी पाठ का भी समाज में बड़ा प्रचार हुआ था। मनरंग के पाठ में सौष्ठव और प्रसाद गुण अधिक है। भक्ति का स्वाभाविक प्रवाह मिलता है यथा भलो वा बुरो जो कछू हों तिहारो। जगन्नाथ दे साथ मो पै निहारो। बिना साथ तेरे न ए कौ बनेगा, नमो जय हमे दीजिए पाद सेवा।२८४ इन पंक्तियों में खड़ी बोली के प्रयोगों का ऐतिहासिक दृष्टि से भाषा वैज्ञानिक महत्त्व है। मनराखन लाल आप जामसा निवासी थे। आपने 'शुद्धात्म सार' छंद वद्ध की रचना सं० १८८४ में की।२८५ मन्नालाल सांगा आपने 'चारित्रसार वचनिका' की रचना सं० १८७१ में की।२८६ मनसुखसागर आपने सं० १८४६ में सोनागिरि पूजा और रक्षाबंधन पूजा नामक पूजा पाठ संबंधी पोथियों की रचना की है।२८७ मयाराम (मायाराम) भोजक, आपकी रचना 'प्रद्युम्नकुमार रास' (सं० १८१८ फाल्गुन शुक्ल ६, सोमवार, बड़नगर) का आदि इस प्रकार है आद्य सकत्य आद्य सक्त नमो अंबाई। बाध वाहिनी वरदायिनी, सरस वयण सारदा माता गुरु गोत्रज माता पिता, तुझ पाओ प्रणमुं सुमतिदाता। वचनविलास पधुबंध हरण कहं कथा आणंद; मयाराम मां अंबिका पूरे परमाणंद। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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