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________________ मतिलाभ - मनरंग लाल उसके बाद लिखा है “अवंती ने ब्राह्मण वराहमिहिर संज्ञ कि शिप्रस्कंध ज्योति निपुणेइ श्री भोजराज ने उपगार कारण लघुजातक ग्रंथ कीधो । मगध देस नी भाषाकारे सोमेश्वर बचन काकरी, सांप्रत श्री मतिसागरेण उपाध्याय श्री वीरसुंदर वाचणाचार्य ने प्रसादि गुज्जर भाषा वचनिका करै छै । ग्रंथनी आदि ग्रंथ निर्विघ्न करवा कारणि सूर्य ने नमस्कार कीजै छै।” अर्थात् वराहमिहिर के मूल ग्रंथ लघुजातक पर मागधी में सोमेश्वर ने वचनिका लिखी। उस पर गुर्जर में मतिसागर ने बालावबोध लिखा। यह ग्रंथ सोमेश्वर की वचनिका पर आधारित है जैसा निम्नांकित पंक्तियों से प्रकट होता है " इति सोमेश्वर विरचितायां लघुजातक टीकायां नष्ट जातकाध्याय त्रयोदसम १८२८१ समाप्त।" मनरंग लाल आप कन्नौज निवासी दिगम्बर जैन श्रावक कनौजी लाल पल्लीवाल की पत्नी देवकी की कुक्षि से पैदा हुए थे। कन्नौज के श्रेष्ठि गोपालदास के आग्रह पर कवि ने 'चौबीस तीर्थंकर का पाठ' सं० १८५७ में लिखा। इसके अलावा नेमिचंद्रिका, सप्त व्यसन चरित्र और सप्तर्षि पूजा नामक ग्रंथ भी लिखे । सं० १८८९ में इन्होंने 'शिखर सम्मेदाचल माहात्म्य' लिखा जिसकी कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ आगे प्रस्तुत की जा रही है - प्रणम रिषभ जिन देव, अजित संभव अभिनंदन; सुमत पदम सुपार्श्व चन्द्र प्रभुकर्म निकंदन पुष्पदंत सीतल श्रीयांस बासपुज्ज विमलवर, जिन अतंत प्रभु धर्म सांत जिन कुंथ अरहनर । श्री मल्लिनाथ मुनि सुष्ट व्रत, निम नेमी आनंद भर । जिन महाराज वामा तनय, महावीर कल्यानकर। सिषिर महातम देष के इह सरधा हम कीन, करो जात्र मन लाय के, जो सुष चाहे नवीन । २८२ १६१ नेमिचन्द्रिका का रचनाकाल कोठारी जी ने अपनी सूची में सं० १८३२ बताया है । २८३ इन्होंने रीति कालीन प्रसिद्ध मात्रिक छंद कवित्त का अपनी रचनाओं में अच्छा प्रयोग किया है । यथा— “पुत्र होत पौत्र होत और परपौत्र होत, धन धान्य सदा मान्य होत लोक में। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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