SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 170
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ मणिचन्द्र - मतिलाभ संघवी शेज गिरि तणो, गावा मन उल्लास। कारतिक बदि तेरस दिने, संघ चाल्यो सुखकारी रे; त्रीण दिवस पादर रह्या, संघवी नी जाऊं बलिहारी रे। खरतरगच्छ देवचंद जी, ते पिण संघ मांहे जाणुं रे; पंडित मांहि शिरोमणी, तेहनी देशना भली बखाणुं रे। शेर्बुजे भेट्यो धरी मन बहु अतिमान रे, राजा पृथ्वीराज जी रे, कुअंर श्री नवधन नामरे। इस प्रकार इस वर्णन में केवल धर्म नही बल्कि तत्कालीन भूगोल और इतिहास का भी पर्याप्त उल्लेख मिलता है। अंत में कलश दिया गया है। यथा- तस संघ यात्रा सुविधि करणी मन प्रमोदे आचरें। तस तवन गुंथ्यो खरतर संघपति हेते आदरे। उवझायवर श्री दीपचंद शिस गुरु देवचंद ओ, तस सिस गणि मतिरत्न भाषै सकल संघ आणंद ओ।२७७ यह महत्त्वपूर्ण रचना 'प्राचीन तीर्थमाला संग्रह' के पृ०१७६-८८ पर प्रकाशित है। मतिलाभ __(मयाचंद) इनका जन्म नाम मयाचंद था। ये खरतरगच्छीय ऋद्धिवल्लभ के शिष्य थे। इन्होंने सं० १८१२ में 'नवतत्त्व स्तवन' की रचना मुलतान में की। इसमें ४५ पद हैं। आपकी दूसरी रचना 'सवा सो सीख संञ्झाय' या बुद्धि रास (१४५ पद्य) है।२७८ देसाई ने सवा सो सीख संञ्झाय या बुद्धि रास का कर्ता रत्नसिंह के शिष्य किसी अन्य मयाचंद को बताया हैं। बुद्धि रास की ये पंक्तियाँ प्रमाण स्वरुप प्रस्तुत है श्री मुलतान नगर सुखकारी, सीख सवा सो इम विस्तारी, गुरु रत्नसिंह सुगुरु चिरनंदे मुनि मयाचंद सदा पद वंदे। इन पंक्तियों से स्पष्ट होता हैं कि इन मयाचंद मुनि के गुरु रत्नसिंह थे अत: ये 'नवतत्त्वस्तवन' के कर्ता मयाचंद के भिन्न है। दोनों कवियों की रचनायें मुलतान में हुई; शायद इसी से एक कवि होने का भ्रम हुआ, किन्तु यह स्पष्ट है कि ये दो कवि है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy