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हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास गज सुकुमाल संञ्झाय
यह रचना जैन संञ्झाय भाग १ में और अन्यत्र भी प्रकाशित है। श्री देसाई ने इस कवि का नाम मुकुंद मोनाणी२७४ भी बताया है परन्तु इसका प्राप्त उदाहरणों या अन्य साक्ष्यों द्वारा कोई प्रमाण नहीं मिला है। मणिचन्द्र
खरतरगच्छीय आध्यात्मिक यति थे। इनकी रचना 'आध्यात्मिक संञ्झायों' सं० १८४९ में कुछ पूर्व की रचित है। इस संञ्झाय संग्रह में आत्मशिक्षा संञ्झाय पृ० १२५ भावीभाव संञ्झाय पृ० १९१ और वैराग्यकारक संञ्झाय पृ० २१३-२३ पर प्रकाशित है। देसाई ने जैनगुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण२७५ में इस कवि को बीसवी सदी का कवि बताया था किन्तु संञ्झाय संग्रह की एक पोथी में लेखनकाल सं० १८४९ दिया हुआ है, इससे स्पष्ट है कि कवि का समय इससे पूर्व होगा अत: वह निश्चय ही १९वीं शती का कवि है। इसलिए नवीन संस्करण के संपादक श्री कोठारी ने इन्हें १९वीं शती में रखा है।२७६ मतिरत्न गणि
आप खतरगच्छ के साधु दीपचंद के प्रशिष्य और देवचन्द्र के शिष्य थे। आपकी रचना 'सिद्धाचल तीर्थयात्रा' (५ ढाल, सं० १८०४ के आसपास) एक यात्रा वर्णन हैं। सूरत के साह कचरा ने संघयात्रा सूरत से निकाली थी जिसमें पहले जलमार्ग से संघ भावनगर पहुँचा। (भावनगर की स्थापना भावसिंह ने सं० १७७४ वैशाख में की थी। संघ यात्रा के समय भावनगर के वही शासक थे। १२ वर्ष राज्य करके वे सं० १८२० स्वर्गवासी हुए थे।) भावनगर से चलकर संघ पालीताणा गया जहाँ से संघ यात्रा में देवचन्द्र भी शामिल हो गये। देवचंद्र के संबंध में कवियण कृत देवविलास में लिखा है
संवत् दस अष्टादसें, कचरा साहा जीइ संघ।
श्री शत्रुजय तीर्थनो, साथै पधार्या देवचंद्र।
इससे तो संघ यात्रा सं० १८१० में निकाली गई लगती है परंतु स्वयं देवचंद्र ने अपनी रचना 'सिद्धाचल स्तवन' में संघ यात्रा का समय १८०४ दिया है अत: इसी अवधि में किसी समय यह संघ यात्रा हुई जिसके कुछ ही समय पश्चात् यह रचना हुई होगी। इसीलिए रचनाकाल १८०४ के आसपास दिया गया है। इसका प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है
सरसति सामिने पाय नमी, मांगु वचन विलास;
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