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________________ १५४ हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास थे। आपने चारुदत्त चरित्र सं० १८१३ भिंड, सप्तव्यसन चरित्र, दान कथा, शीलकथा, दर्शनकथा, रात्रिभोजन कथा आदि कई ग्रंथ लिखे है।२६५ इनके अधिकांश ग्रंथ चरितग्रंथ है और प्रकाशित हो गये है पर जहाँ तक काव्यत्व का प्रश्न है वह बहुत उच्चकोटि का नहीं है। रचनाओं के कछ विवरण आगे दिये जा रहे है। सप्तव्यसन समुच्चय चौपाई (१८१४ आषाढ़ शुक्ल १४, शनिवार, फर्रुखबाद) शीलकथा (५४८ कड़ी) का प्रारंभ देखिये प्रथमहि प्रणमौं श्री जिनदेव, इन्द्र नरेन्द्र करै नित सेव; तीन लोक मैं मराल रूप, ते वंदौ जिनराज अनूप। पंच परम गुरु वंदन करौं, कर्म कलंक छिनक में हरों बंदौ श्री सरस्वती के पाय, सीलकथा जु कहौं मन लाय। अंत- शीलकथा यह पूरनभइ, भारामल्ल प्रगट करि कही।२६६ स्मरणीय है कि १६वीं शती में एक राजा भारामल्ल हो गये हैं जो स्वयं रचनाकार थे और कवियों को आश्रय देते थे। उनके लिए कवि राजमल्ल ने "छंदोविद्या' लिखी थी। इनका विवरण यथास्थान इस ग्रंथ के प्रथम खण्ड में दिया जा चुका है। भीखजी आपकी रचना 'आषाढ़ भूति चौढालियु' सं० १८३६ आषाढ़ कृष्ण १०, नागौर) का उल्लेख देसाई ने किया है।२६७ भीखणजी (भीखु) आप तेरापंथी संप्रदाय के प्रवर्तक थे। इनका जन्म मारवाड़ के कंटालिया ग्राम में सं० १७८३ में शांखलेचा बलुजी की पत्नी दीपाबाई की कुक्षि से हुआ था। २५ वर्ष की वय में आपने स्थानकवासी आचार्य रघुनाथ जी से दीक्ष ली, किन्तु उनसे मतभेद होने पर आपने सं० १८१७ में अपना एक संप्रदाय चलाया। जिसे तेरह या तेरापंथी कहा जाता है। आप अच्छे लेखक थे। आपकी ५५ पद्यवद्ध रचनायें 'भिक्षु ग्रंथ रत्नाकर' के खण्ड १ और २ में संकलित-प्रकाशित है। तीसरे खण्ड में गद्य रचनायें हैं। प्रथम खण्ड में सैद्धांतिक और द्वितीय खंड में चरित काव्य संकालित है। आपने सं० १८६० में शरीर त्याग किया। अनुकम्पाढाल अथवा चतुष्पदी, निक्षेप विचार वारव्रत चौपाई और नवतत्त्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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