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________________ भगुदास - भागीरथ १५३ तो पिण शांत सुधा रसे मुझ कविताई वचन, उत्तमना सहेजो कोई, परम उपगारी मन्न। प्रथम तिहां विक्रम तणो उत्पत्ति सरस संबंध, अनुक्रमें लीलावति कथा कहेस्युं सील प्रबंध। रस रसिक संबंध जास्यो वक्ता तिम होय, श्रोता तिम हुई रसिक जो ओह रस सम नहि कोय। इसमें विजयदेव> विजयप्रभ> विजयरत्न> विजयक्षमा> विजयदया> विजयधर्म> विजयप्रभ तथा उनके शिष्य प्रेमविजय को सादर नमन किया गया है। कवि गुरु के संबंध में कहता हैगुरु- पंडित प्रेमविजय नो सेवक गुरु आणा सिरधारी जी, भाणविजय विक्रम भूपति नो रास रच्यो सुखकारी जी। रचनाकाल- संवत् पूर्ण हुतासन वसु ससी जेष्ठ मास सुद दसमी जी, रवीवारे वलि स्वाति नक्षत्रे शिवयोग ते शिवधर्मी जी; पूरण रास ओ ते दिन कीधो, हर्ष अमृत रस पीधो जी, अवरंगाबाद मां कारज सीधो, गुणीई अंगीकरी लीधो जी। इसमें विक्रमादित्य लीलावती की कथा के माध्यम से शील का महत्त्व प्रतिपादित किया गया है। इनकी एक और रचना है-'चौबीसी' आदि- मोरा स्वामी हो श्री प्रथम जिणंद के ऋषभ जिनेश्वर सांभलो। अंत- ध्येय स्वरुपे ध्याय तमने जे, मन वच काय आराधे रे, प्रेम विबुध भाण पभणे ते नर वर्धमान सुख साधे रे।२६३ यह चौबीसी 'चौबीसी-बीशी संग्रह' पृ०२९३ पर और 'स्तवन मंजूषा' में भी प्रकाशित हैं। भागीरथ आपकी मात्र एक रचना ‘सोनागिर पच्चीसी १६४ सं० १८६१ का उल्लेख कस्तूरचंद कासलीवाल ने किया है किन्तु लेखक के संबंध में कुछ नहीं दिया गया है। भारामल्ल आप फर्रुखाबाद निवासी सिंधई परशुराम के पुत्र थे। आप तेरापंथ के विद्वान् Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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