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बखतराम शाह - बुधजन
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बख्तावरमल्ल
___ आप दिल्ली निवासी थे। इन्होंने सं० १८९४ में जिनदत्त चरित्र और नेमिनाथ पुराण सं० १९०९ आदि की२५१ रचना की। चूँकि ये १९वीं- वीसवीं शती के रचनाकार हैं इसलिए इनकी २० वीं शती की रचनाओं का विस्तृत विवरण अगले खण्ड में जाना ही उचित समझ कर यहाँ विस्तार नहीं किया जा रहा है। बख्शीराम
आपने सं० १८२६ में 'दूढिया मत खण्डन' नामक एक शुद्ध साम्प्रदायिक रचना की। जिसके आदि अंत की पंक्तियाँ दे रहा हूँ। आदि- श्री सरवग्य सुदेव को, मन वच सीस नवाइ,
कहूं कछू संक्षेप सौं, परमत खोज बनाई। रचनाकाल अंत में इस प्रकार दिया गया है
संवत् अठरा से धरै, मिल्या सुजोग समास है, परख परमत कछु सजन्म न धरो सिर सुखरास है।२५२
बालकृष्ण
इनकी रचना 'प्रशस्ति काशिका' यद्यपि काशी की संस्कृति, भाषा आदि के संदर्भ में महत्त्वपूर्ण है किन्तु संस्कृत की रचना होने से उसे छोड़ना ही उचित है। बुधजन (विरधीचंद)
बुधजन का पूरा नाम विरधीचंद था, ये जयपुर निवासी निहालचंद खण्डेलवाल के पुत्र थे। इनका एक नाम शायद भदीचंद भी था। इनका बनवाया भदीचंद मंदिर जयपुर में है।२५३ तत्त्वार्थ बोध १८७१, बुधजन सतसई १८८१, पंचास्तिकाय १८९१, बुधजनविलास १८९३ इनकी प्रमुख रचनायें हैं। इन सभी रचनाओं में बुधजनसतसई रचना सौष्ठव, भाषा प्रांजलता और भाव वैशिष्ट्य की दृष्टि से सर्वोत्तम रचना है। माणिक्यचंदने इस सतसइ के चार प्रकरण-देवानुराग शतक, सुभाषित नीति उपदेशाधिकार और विरागभावना-बताये हैं। देवानुराग प्रकरण के कुछ दोहे सूर तुलसी जैसी प्रगाढ़ भक्ति भावना से ओतप्रोत है। एक उदाहरण
मेरे औगुन जिन गिनों मै औगुन को धाम, पतित उधारक आप हौ, करो पतित को काम।
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