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रचनाकाल
कलश
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
सांभलियो थिर चित्त करी, रास भणुं सुखदाय, श्रोताजन तुम मत करो, वधिर गीत नो न्याय । चरित्र पीठिका पहली ठाल, पभणी फतेन्द्रसागर सुविशाल । श्रोताजन सांभलोचित लाय, नित-नित तीर्थ तणा गुण गाय ।
संवत् अठार पचासा, वरण भाद्रव मास विशेषै जी वदि पखवाड़े अष्टमी दिवसेगोविंद जन्म विशेषै जी ।
तेणे रास अ रचना मांड्यो, बगड़ी नगर मझारी जी | अष्ट प्रकार पूजा फल महिमा भविजन महिमा धारो जी, पूरण कीधो बेनातट मां, सकल जीव हितकारी जी । अह सुणी ने पूजसी त्रिज्ञान, त्रिण्य काल दिलधारी जी |
केवली श्री विजयचंदे अष्टपूजा वर्णवी, हरचंद राजा सुणी, सुद्धे करी पूजा अभिनवी । जिनराज देहरै त्रिण्य कालै भावना भावै वली, इह रास मोहें कही फत्तै पूज्ज्यो भवि मनरली | २४८
बखतराम साह
आप लश्कर (जयपुर) के निवासी श्री प्रेमराज साह के पुत्र थे जो पहले चाटसू में रहते थे। बाद में जयपुर में रहने लगे थे। इन्होंने मिथ्यात्व खण्डन और बुद्धि विलास नामक दो ग्रंथ लिखे हैं। कुछ पद भी इनके प्राप्त हुए हैं। इनके पुत्र थे जीवनराम, सेवाराम, खुसालचंद और गुमानीराम। जीवनराम ने प्रभु की स्तुति के पद 'जगजीवन' उपनाम से लिखे हैं। २४९ 'मिथ्यात्व खण्डन वचनिका' सं० १८३५, इसमें लेखक ने आत्मपरिचय भी दिया है। कहीं इसका रचनाकाल सं० १८२१ भी दिया है। २५० डॉ० क० च० कासलीवाल ने दो सूचियों में दो रचनाकाल किस आधार पर लिखा यह स्पष्ट नही हैं। इनकी दूसरी रचना 'बुद्धि विलास' का रचनाकाल १८२७ दिया गया हैं, इसका विषय धर्मदर्शन है, यह हिन्दी पद्य की रचना है। इसमें जयपुर का ऐतिहासिक वर्णन है । कामताप्रसाद जैन ने धर्म बुद्धि की कथा का रचनाकाल सं० १८०० बताया है। बुद्धि विलास और धर्म - बुद्धि की कथा एक ही रचना है या दो रचनायें हैं, यह भी पता नहीं है। इसके बाद मिथ्यात्व खंडन वचनिका लिखी जिसमें टोडरमल की मृत्यु का उल्लेख है। इस प्रकार इनकी रचनाओं का ऐतिहासिक दृष्टि से महत्त्व है। रचनायें साधारण हैं।
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