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देवीचंद - देवीदास को बताया गया था, पर कवि का नाम देवीचंद ही है।२०३ देवीदान नाइता
(वारोट के चारण) रचना-वैताल पचीसी सं० १८३६; आदि- प्रणमुं सरसति माय, वले विनायक वीन,,
बुद्धि सिद्धि दीवाय, सन्मुख थाये सरस्वती। देश मरुस्थल देखि नौ कोटी में कोंट नव, पिण बीकानेर विशेष, मन निश्चै कर जाणज्यौ। तिहां राज करै राठौड़, करन सूर सुत करन सो, मही क्षत्रियां सिरमौड़ खत्रवटि खुभांणा खरो। तस कुंवर अनूपसिंह प्राक्रम सिंध सो,
भेदक भल गुण भूप, आगें तेउ आपस दीयो।
यह रचना बीकानेर रियासत के कुमार अनूपसिंह के आश्रय में लिखी गई लगती है। इसकी कथा संस्कृत में विरचित विक्रम वैताल कथा पर आधारित है यथा
संस्कृत की सद्भाइ कथा विक्रम वैताल री,
भाषा कहि संभलाइ, तु देइदान नाइता।
इसमें गद्य का भी प्रयोग यत्र-तत्र किया गया हैं। वह भाषा विकास की दृष्टि से ऐतिहासिक महत्त्व का है, इसलिए कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत है
दक्षिण दिश रै विषै मालवो देश तटै उजैणी नाम नगरी, तिहां राजा विक्रमादित्य राज करै, तिनको राजा महादानी पर दुख कारण सूरवीर वत्तीस लक्षण सहित। ओकदा राजा मुख्य प्रधान मुहंता मंत्री सिकदार सितरखांन बहूतर उमराव सभा सहित बैठो। अंत- कौतुक कुंवर अनूपसिंध कानडे लिखी बणाई,
बात पचीस बैताल री, भाषा कही बहू गाई।२०४
राजस्थानी गद्य भाषा के विकास की दृष्टि से इस प्रकार के ग्रंथों का महत्त्व निर्विवाद है।
देवीदास
इन्होंने “चौबीस तीर्थंकर पूजा” नामक रचना सं०, १८२१ श्रावण शुक्ल
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