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________________ १२४ वर्ष १९४८ अप्रैल सितंबर अंक में प्रकाशित है। आपकी दूसरी रचना 'डीसा नी ग़जल' (१२० कड़ी) अगरचंद नाहटा द्वारा संपादित 'स्वाध्याय' पु० ७ अंक ३ में छपी है। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ इस प्रकार है - कलश देवीचंद हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास चरण कमल गुरु लाय चित्त, सबल जन कुं सुखदाय; के प्रतिबोधी दृढ़ किया, विपुल सुग्यांन बताय। गाऊं गुणदीसा गुहिर, सिद्ध माता सुध थांन, समरुं देवी अंबा सिद्ध, विधन विडार दीयै धन वृद्ध। सुणतां मंगलमाल देवे कुशल गुरु वांछित दाता, चुगली चोर मद चूर सदा सुख आवै ज्ञाता । चंद्र गच्छ सीर चंद गुरु जिनहर्ष सुरीश्वर गाजे, प्रतपो द्रूय जिम पूर, भज्यां सब दालिद्र भाजे। पुन्य सुजस कीधो प्रगट, जिहतां सिद्ध अंबा माता धणी, कवि देवहर्ष मुख की कहे, दीपै सुजस लीला घणी | २० पार्श्वचंद सूरिगच्छ के लेखक थे। इन्होंने 'राजसिंह कुमार चौ०' (१० ढाल, सं० १८२७ कार्तिक शुक्ला ५, भोमवार, मेडता ) की रचना की हैं। आदि रचनाकाल परम देव प्रणमी करी, वर्द्धमान भगवान, परमेष्ठी नवकार नौ फल करहुं वषांण । इसमें राजसिंह कुमार की कथा के दृष्टांत द्वारा नवकार मंत्र के माहात्म्य पर प्रकाश डाला गया है। इसमें शिवकुमार, डुंडक आदि का भी उदाहरणार्थ उल्लेख किया गया है। अंत गछ निरमल रे सूरि पासचंद्र नो, तस गुण पिणारे भाखे प्रोहित इंद्रनो । X X X X करी सुख सुं नवम थानक सिख भाखे अ सही, ऋष देवीचंद बोली ढाल दसमी गहगही । नगर मेड़ता ठाम मोटो अठार से सत बीस में, मास कार्तिक शुक्ल पंचमी भोमवार कर निरगमें। जैन गुर्जर कवियों के प्रथम संस्करण में पहले इस रचना का कर्त्ता देवीदास Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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