________________
१२०
सं०
हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास
संयम के दस स्थानों का वर्णन इन पंक्तियों में किया गया है
खांडण पीसण चूलक ठांम, चैत्य सामायक जल विश्राम; पोढ़ण धान विजय भोजन, ओ दस ठामें करीयें जतन । १९६
दुर्गादास -
इनका जन्म सं० १८०६ में भाखाड़ जंक्शन के पास सालटिया ग्राम में हुआ था। इनके पिता का नाम शिवराज और माता का सेवा देवी था। १५ वर्ष की वय में ० १८२१ में इन्होंने मेवाड़ के ऊटांला (वल्लभ नगर) नामक स्थान में आचार्य कुशल दास (कुशलो जी) से दीक्षा ली। ये पक्के साधक और संयम पालन के दृढ़वती थे। ये अच्छे कवि भी थे और पदों, संञ्झायों ढालों में अनेक स्तवन संञ्झाय, रास, चरित और पदों की रचना की। नोकरवारी स्तवन, पार्श्वनाथ स्तवन, जंबू जी की संञ्झाय, महावीर, तेरह अभीग्रह की संञ्झाय, गौतमरास, ऋषभ चरित, उपदेशात्मक ढाल, सवैया और स्फुट पद आपकी प्राप्त रचनायें है आपके पद भावप्रवण और वैराग्य प्रधान हैं। सं० १८८२ श्रावण शुक्ल दसमी को जोधपुर में इनका स्वर्गवास हुआ। १९७
देवचंद
आप गांगड निवासी वीसा श्रीमाली श्रावक थे। इन्होंने नेमनाथ शलोको की रचना सं० १९०० श्रावण कृष्ण पंचमी, शुक्रवार को गांगड में की। इनकी दूसरी रचना 'विवेकविलास नो शलोको' सं० १९०३ की है । अत: इन्हें २० वीं शती में स्थान देना उचित होगा । नमूने के लिए प्रथम शलोको की दो पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं
सरसति माता हुं तुम पाय लांगुं,
देव
गुरु तणि आगना मांगु ।
जिह्वा अग्रे तु बेसने आई, वाणी तणी तो करजो सवाई |
यह रचना शलोका संग्रह में प्रकाशित है । १९८
(मुनि) देवचंद -
आप जिनलाभ सूरि के शिष्य थे। ऐ० जैन काव्य संग्रह में 'जिनलाभ सूरि गीतानि' शीर्षक के अन्तर्गत संकलित दूसरा गीत आपका है जिसकी अंतिम पंक्तियाँ उदाहरणार्थ आगे प्रस्तुत की जा रही है -
अरज अम्हीणी पूज्य अवधारियों सूरीसर सिरिचंद; बेकर जोड़ी त्रिकरण भावसुं वंदै मुनि देवचंद | १९९
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org