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________________ द्यानत - दीपविजय आदरे सील पाले अखंड कवड़ तास समोवड करे। अंत- इह लोके सुजस पसरे इला, परलोके हुइ परमगति आदरे सील पालै अखंड, कहे अम दीपो कवित्त। 'वीरस्वामी नो रास'आदि- “श्री जिन वर्द्धमान पाओ प्रणमीइ, भाव सहित श्री गौतम नमीइ। X X X X त्रैलोक्य मध्ये सौम्य कारक आज शासन अहनउ, चउबीस मा वर्द्धमान स्वामी धवल गाऊ तेहनउ। इसकी प्रति खंडित है। कर्ता का नाम कहीं दीप मुनि मिलता है। रचनाकाल संबंधी पंक्तियाँ नहीं मिली, इसलिए रचनाकाल निश्चित नहीं है। जै० गु० क० के प्रथम संस्करण में इन्हें १९वीं शती में दिया था।१९१ किन्तु उसके नवीन संस्करण में नही है। इनका विस्तृत विवरण न० सं० के ५वें खण्ड में पृ० १८४-१८८ पर दिया गया है और मरुगुर्जर हि० जै० सा० के वृ० इतिहास भाग ३ में पृ० २२२ पर प्रकाशित हो चुका है। वहाँ उन्हें धर्मसिंह के बजाय वर्द्धमान का शिष्य कहा गया है। चूंकि इनकी अन्य रचना गुणकरंड गुणावली चौ० का रचना काल अन्तक्ष्यि के आधार पर १८वीं वि० निश्चित है इसलिए इनका विवरण १८वीं में दिया जाना उचित है। सुदर्शन सेठ रास की प्रति १८३६ से पूर्व की है इसलिए रचना १८वीं शती के अंत या १९वीं शती के प्रारम्भ की हो सकती है, इसीलिए यहाँ भी उल्लेख कर दिया गया है। दीपचंद कासलीवाल चूँकि इनका रचनाकाल १८वीं १९वीं शती दोनों था, इसलिए पूर्व क्रमानुसार इनका विवरण इस ग्रंथ के तृतीय खण्ड में दिया जा चुका है।१९२ दीपविजय रचना- स्थूलिभद्र नवरस दुहा सं० १८४९ से पूर्व रचित। अंत- थुलिभद्र कोस्या भावतां पोहचे वंछित आस, घर-घर ओछव अति घणा, नित प्रति लील, विलास ओक करी थूलीभद्र तणी उदयरत्न नवढाल, दूहा दीपविजये कह्या, गणतां मंगलमाल। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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