SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 110
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ज्ञानचंद | - ज्ञानसागर मालापिंगल छंद शास्त्र संबंधी ग्रंथ है। जब आपने मुर्शिदाबाद में चौमासा किया था तब के बंगला समाज की अवस्था का इसमें अच्छा वर्णन है। आपने मोहनविजय की प्रसिद्ध रचना चंद चौपाई की समालोचना दोहे छंद में की है और 'समालोचना-सिंगार' लिखा है। आनंद धन के प्रति इन्हें बड़ी श्रद्धा थी और उनके पदों का अनुसरण करके आपने भी बहुत से पद रचे है, उदाहरणार्थ ‘पद बहुत्तरी' से एक पद की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं भोर भयो अब जाग बावरे। कौन पुण्य ते नरभव पायो, क्यूं सूता अब पाय दाँव रे। धन वनिता सुत भ्रात तात को मोह मगन इत विकल भाव रे। कोई न तेरो तू नहीं काकऊं, इस संयोग अनादि सुभाव रे। आरज देस उत्तम गुरु संगत, पाई पूरब पुण्य प्रभाव रे। ज्ञानसार जिनमारग लाधो, क्यों डूबे अब पाई नाव रे। चंद चौपाई समालोचना का एक उदाहरण ए निच्चे-निच्चे करो, लखि रचना को मांझ, छंद अलंकार निपुण नहि मोहन कविराज।१५७ पूर्व देश वर्णन छंद (१३३ कड़ी सं० १८५२ के लगभग); ज्ञानसार ने सं० १८४९ से १८५२ में चौमासा पूर्व देश में किया था अत: रचना इसी अवधि या इसके कुछ बाद की होगी। केइ में देख्या देश विशेखा नहि रे अथका सवही में, जिह रूप न रेखा नारी पुरुषा फिर-फिर देखा नगरी में। जिह कांणी चुचरी अंधरी बहरी लंगरी पंगुरी हवै काई, पूरब मति जाज्यों पश्चिम जाज्यौ दक्षिण उत्तर हो भाई। अंत- जाणी जेती बात तिती मैं प्रगट बषाणी, झूठी कथ नहीं कथी कही है सांच कहानी। पिण रति सहू इक बातनों, तन सुख चाहै देह धर, नारण धरी अरु क्या पहुर, रहै नहीं सो सुघर नर। माधवसिंह वर्णन (२१ कड़ी) इसमें जयपुर नरेश माधवसिंह का वर्णन है। अंत- ओ नरिंद विधि कै वरष जयपुर धारै राज, आपद झगरि सगत्ति इणि असो शुभ सिरत्ताज। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy