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________________ ९२ रचनाकाल1 हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आपने भगवतीसूत्र ढालबंध उत्तराध्ययनसूत्र ढालबंध, दशवैकालिक सूत्र ढालबंध, प्रश्नोत्तर तत्त्वबोध, भिक्षुजस रसायन ( प्रकाशित), हेमनवरसा, दीपजस, जयजस और श्रावकाराधना इत्यादि अनेक ग्रंथ रचे हैं किन्तु अधिकतर रचनायें बीसवी शती की है इसलिए इस ग्रंथ की सीमा से परे हैं और उनका विवरण- उद्धरण नहीं दिया जा रहा है। जीव जी अंत इम बहुजन नारिया रे प्रणमूं चरम जिनेन्द्र, उगणीसै आसो ज चौथ बदी, हुआ अधिक आनंद | १४४ आपकी एक रचना 'मयणरेहारास' की हस्तप्रति सं० १९०४ की प्राप्त है। अतः यह रचना १९ वीं वि० के अंतिम चरण की होगी, ऐसा अनुमान करके यहाँ इसका उल्लेख किया जा रहा है - आदि Jain Education International जोवो मांस दारू थकी, करे वेश्या सो जोख, जीवहिंसा चोरी करै, परनारी रे दोष (सप्रव्यसन) X X X विसन सात को परनारी रे, जीवघात धर हांणी, मणारथ राजा नरकें पोहतो, कुजस बांध नै प्राणी । X X X विषयारस तो विषम जाणीनै, सद्गगुरू सेवा कीजै, मणारथ राजा नी बात सुणीनै, परनारी संग न कीजै । दान सील तप संजम पालों, दोषण सगला टालौ, दयाधरम री समता आणो, दूर करो आचारो । जपतप संजम पालो रे भाई विषय विकार गमाई, जीवजी केतो महासुखपाई, वीर वचन मनलाई । १४५ ऋषि जेमल (लोकागच्छ) आपने सं० १८०७ में 'साधुवंदना' नामक कृति की रचना (१११ कड़ी में) जालौर में किया। आदि नमुं अनंत चौबीसी, रिषभादिक महाबीर; आर्य क्षेत्र मां, घाली धर्म नी सीर । महा अतुल्य बलीनर, शूरवीर ने धीर, For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002093
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 4
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1999
Total Pages326
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size11 MB
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