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मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास आदि ....ध्यान विनय विडसग धरो ए देसी
प्रणमी जिनवर वीर जी रे समरी गुरु कल्याण श्रावक श्राविका गुण भणं रे सुत्त तणा परिमाण रे ।
सुंदर सांभलौ श्रावक नाम जिम थापै स्डा काम रे । रचनाकाल--संवर सतर पच्चासीय रे गगडाणइ चउमास, गण गुरुआ श्री थावक सहरे इम कह ऋषभदास रे।
सुंदर मांभलो श्रावक नाम ।' (३) वीर जिनस्तवन (१७ कड़ी) अन्त-देज्यो सेवा दया करी मुझ मन मोटी आस, आ
तारक तूं प्रभु माहरो रे ओ जाणो अरदास । सूखकारी सद्गरु भलो नामै श्री कल्याण,
ऋषभदाम इपरि कह समरण होय सुजाण । ऋषभदास नामक प्रसिद्ध श्रावक कवि इससे पूर्व हो चुके हैं । चौमासा रहने वाले ये ऋषभदास अवश्य साधु होंगे किन्तु अपने गच्छादि का इन्होंने उल्लेख नहीं किया है।
ऋषभसागर तपागच्छीय चारित्रसागर>कल्याणसागर>ऋद्धिसागर के शिष्य थे। इनकी रचना 'गणमंजरी वरदत्त चौपाई' (सं० १७४८ ?) कार्तिक शुक्ल ५ सोमवार, आगरा) आदि-प्रणमुं जगदानंदकर जगनायक जिनराज,
सांभरतां संपजै सकल सुख सिरताज । गुणधर गणधर लबधिकर श्रत प्रबधर सार
कंचन कंजासन सरस, ध्यान धरइधीधीर । आपके विद्यागुरु जसराज थे जो इन पंक्तियों से प्रकट होता है--
____ कलि प्रणमुं विद्यागुरु पंडित श्री जमराय । कवि ने ज्ञान का महत्व बताते हुए लिखा है --
ज्ञान थकी पावै मगति, ग्यानई परमानंद,
ज्ञान कलपतरु मम कह्यो, सुणो भविक जनवंद । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई ---जैन गुर्जर कवियो भाग ३ पृ० १४३०
(प्र० सं०) और भाग ५ पृ २८७-२८८ (न० सं०) । २. वही, भाग ५ पृ० ४१७-१८ (न० सं०)।
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