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________________ ऋषभदास उदयसिंह ... ये सदारंग के शिष्य थे। इन्होंने आश्विन शुक्ल १० सं० १७६८ में 'महावीर चौढालिया' की रचना किशनगढ़ में की।' सदारंग नागोरीगच्छ के माधु थे। इस रचना का उद्धरण नहीं मिल पाया। उदयसूरि -ये खरतरगच्छीय बेगड़शाखा के गुणसमुद्र सूरि के प्रशि-य और जिनसुंदर मूरि के शिष्य थे। खरतरगच्छ में जिनोदयसुरि के समय सं० १४२२ में जब धर्मविलास आचार्य पद पर थे तभी बेगड़ शाखा चली थी। इसके पट्टधरों में जिनशेखर>जिनधर्म > जिनचन्द्र>जिनमेझ>जिनगण>जिनेश्वर >जिनचन्द्र>जिनसमुद्र आदि सुरि गुणसमुद्र से पूर्व हो चुके थे। उदयसूरि ने सं० १७१९ श्रावण में 'सुरसुंदरी अमरकुमार राम' की रचना की। इस राम में रचना का समय इस प्रकार बताया गया है - संवत उगणोत्तर श्रावण मासि, अह रच्यो उलास, वेगड खरतर गच्छ विराजे, गुणसमुद्र सूरि गाजै । वर्तमान गुरुगच्छ वडइ, श्री जिनसुंदर सुरिंदा, श्री उदैसूरि कर जोड गावे, सुख सम्पत्ति सदा । उगणोत्तर का अर्थ देसाई ने १९ लिया है किन्तु श्री अ०च० नाहटा ने इसका रचनाकाल सं० १७६९ बताया है । ऋषभदास-कल्याण शिष्य; आपकी तीन रचनाओं का पता चलता है (१) २३ पदवी स्वाध्याय (१८ कड़ी सं० १७७२ चौमासा गगडाण) आदि .. 'गणधर गौतम स्वामी जी समरी श्रुतदातारो रे । (२) श्रावक नाम वर्णन (१५ कड़ी सं० १७८५ चौमासा गगडाण) १. अगरचंद नाहटा ... परंपरा पृ० ११४ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई ... जैन गुर्जर कवियो भाग ३ प १४२२ (प्र० मं० ) और भाग ', पृ० २६७ (न ० सं०)। ३. वहीं, भाग २ पृ. १८६-१८७ (प्र० सं०) । ४. अगरचन्द नाहटा परंपरा पृ० १०८ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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