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पुस्तक की पाण्डुलिपि सन् १९९५ में मैंने छपने के लिए दे दी थी, कुछ विलंब हुआ पर पुस्तक अच्छी छपी । 'देर आयत दुरुस्त आयत' । मैं संस्थान के संबंधित अधिकारियों को एतदर्थ धन्यवाद देता हूँ। लेखन-प्रकाशन के हर स्तर पर जैसी प्रेरणा निदेशक प्रो० सागरमल से मिलती रही उसके लिए मैं उनका हृदय से आभार स्वीकार करता हूँ।
अस्वस्थ हो जाने के कारण विषयसूची, संदर्भ ग्रंथसूची और पुस्तक तथा लेखक नामानुक्रमणिका तैयार करने में मैं असमर्थ हो रहा था किन्तु आत्मज असीम कुमार ने यह सारा शुष्क किन्तु अत्यावश्यक कार्य बड़ी तत्परता से पूरा किया; एतदर्थ मैं उसे शुभाशीष देता हूँ और यह पुस्तक मैं अपने दिवंगत पूज्य पिता पं० शत्रुघ्न मिश्र के चरणों में श्रद्धांजलि स्वरूप समर्पित करता हूँ।
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