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________________ लेखकीय निवेदन 'हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास के तृतीय खण्ड में १८ वीं शताब्दी (विक्रम) के हिन्दी जैन साहित्यकारों और उनकी सुलभ रचनाओं का विवरण दिया गया है। १७वीं और १८वीं शताब्दी साहित्य-सृजन की दृष्टि से हिन्दी जैन साहित्य का स्वर्णयुग माना जाता है। इसलिए इनमें रचनाओं और रचनाकारों का बाहुल्य स्वाभाविक है। वे केवल संख्या में ही अधिक नहीं हैं बल्कि अनेक साहित्यिक गुणों की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण हैं। सत्रहवीं शती के कई महापुरुष १८वीं में भी सृजनशील रहे और कुछ नये रचनाकार भी सामने आये। इसलिए विवरण-संबंधी ग्रंथ का कलेवर बढ़ गया। इसमें दो-तीन कवियों का दुबारा उल्लेख इसलिए हो गया है क्योंकि पाण्डुलिपि तैयार हो जाने के पश्चात् उनके संबंध में कुछ महत्वपूर्ण सचनायें मिली जिन्हें बढ़ाना जरूरी लगा। कलेवर बढ़ने के भय से ही अज्ञात कवियों की रचनाओं और कुछ अज्ञात गद्यात्मक कृतियोंटीका, टब्बा, बालावनोध इत्यादि का विवरण छोड़ना पड़ा है : ब्रह्मनाथू और नाथू ब्रह्मचारी एक ही कवि हैं, वह भूल से छप गया। मैंने तो इसकी रचना जगह-जगह से गोचरी करके तैयार की है। जिन महानुभावों से ज्ञानभिक्षा प्राप्त की गई है उनकी रचनाओं का उल्लेख सहायक संदर्भ पुस्तक सूची में कर दिया गया है : मैं उन महानुभावों का ऋणी हूँ, आभारी हूँ। प्रारंभ में मुझे इस ग्रंथ के निर्माण के लिए दिशानिर्देश मिला था कि मैं इस संबंध में श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई और श्री अगरचंद नाहटा को प्रमुख रूप से मार्गदर्शक मानकर चलूं : मैंने भरसक वैसा ही किया है ! मोहनलाल दलीचंद देसाई के ग्रंथ 'जैन गुर्जर कवियों' से मुझे सर्वाधिक सहायता मिली जो पुस्तक के पन्ने-पन्ने पर अंकित है। मैं उनकी दिवंगत आत्मा के प्रति श्रद्धावनत हूँ और उनके नवीन संस्करण के संपादक श्री जयंत कोठारी का भी आभार स्वीकार करता हूँ। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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