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उदयविजय
पवयण देवी चित्त धरी जी, विनय बखाणो संसार, जंबूनइं पूछयई कह्यो जी, श्री सोहम् गण्धार ।
भविकजन विनय कहो सुखकार । यह रचना जैन संञ्झाय संग्रह (साराभाई नवाब) में प्रकाशित है। २० विहरमान जिन गीतानि-यह कृति कवि ने ताराचंद रूपचंद के आग्रह पर लिखा था -
कचरा सुत ताराचंद छाजइ, रूपचंद सुत राजइ जी,
तास वचन थी सबल दिवाजइ, कर्या गीत गुण गाजइ जी। विमलाचल स्तव (२६ कड़ी) छोटी रचना है इसका प्रारम्भ इस पंक्ति से हुआ है
श्री आदीसर ओलगु रे लो वीनतडी अवधार रे जिणंदराय । - अनाथी मुनि संञ्झाय का आदि-'मगधदेश राज ग्रहि नगरी राजा श्रेणिक दीपे रे' से हुआ है।
उदयसमद्र--खरतरगच्छ के जिनचन्द्र सूरि की परंपरा में ये कमलहर्ष के शिष्य थे। इन्होंने कुलध्वजरास' अथवा रसलहरी (२९ ढाल, सं० १७२८ ?) में लिखा जिसका मंगलाचरण इस दोहे से प्रारंभ होता है
श्रुतदेवी समरं सदा, प्रणमुं सद्गुरु पाय ।
मीठी वाणी मुख थकि, प्रगटे जास प्रसाद । इसमें शील का महत्त्व बताया गया है, यथा----
दान शियल तप भावना, चउविह धरम प्रधान ।
शियल सरीखो को नहि, इम भाषे वर्द्धमान ॥ सोहम् पाट की बेरी शाखा, कोटिक गण, खरतरगच्छ के जिनरतन सूरि के पट्ट पर आसीन श्री जिनवर्धमान के आदेश से कवि ने
१. मोहनलाल दलीचंद देसाई... जैन गुर्जर कवियो भाग ८ पृ० २७३
(न० सं०) । २ वही, भाग ३, पृ० १२१२-१३ और १२६१-६६ (प्र० सं०)। ३. वही भाग ४ पृ० ४२५ (न० सं०) और भाग २ पृ० ५६० ।
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