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उदयरत्न
पाटणपुर ने परिसरि रे, उर्णाकपुर संघनां । भीडिमंडन प्रतपे प्रभु रे, जिहां श्री पास जिना ।
लीलावती सुमति विलास रास अथवा चौपाई (२१ ढाल ३४८ कड़ी, सं० १७६७ भादो कृष्ण सोम, पाटण, उनां) आदि
परम पुरुष प्रभु पास जिन, सरसती सद्गुरु पाय । वंदी गुण लीलावती, बोलीस बुद्धि बनाय ।
रचनाकाल - वरस सत्तर से सत्तसठे आसो वद छट्ठि सोमवारी जी । मृगसिर नक्षत्रे ने शिवयोगे, गाम उनाऊं मझार जी |
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इसे भीमशी माणेक और कालीदास सांकलचंद ने प्रकाशित किया है । धर्मबुद्धि मंत्री अने पापबुद्धि राजानो रास ( २७ ढाल ३९६ कड़ी सं० १७६८ मागसर शुक्ल ११ रविवार, पाटण ) ( प्रायः राजा क्षत्रिय थे तथा विलासी और मांस मदिरासेवी होते थे परन्तु मन्त्री जैन वैश्य होते जो निरामिष, अहिंसावादी और अपरिग्रही होते थे इसलिए उनकी धर्मबुद्धि से पापबुद्धि राजाओं का भी कल्याण होता था, इसलिए जैन साहित्य में ऐसी कई कथाएँ प्रचलित हैं ।) इसका रचनाकाल इस प्रकार कहा गया है
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सिद्धि रस मुनि इंदु समये ( १७६८ ) अकादसी अजुआली, मागसिर सी र विदिन शिवयोगे, नक्षत्र अश्विनी माली रे । इस रचना को सवाईचंद राइचंद ( अहमदाबाद ) ने प्रकाशित किया है ।
शत्रुंजय तीर्थमाला उद्धार रास सं० १७६९ की रचना है ।
भुवनभानु केवली रास अथवा रसलही रास (९७ ढाल २४२४ कड़ी सं० १७६९ पौष कृष्ण १३ मंगलवार, पाटण, उनाउ ) यह मूलतः मलधारी गच्छ के हेमचन्द्र सूरि द्वारा विरचित है उसी के आधार पर यह उदयरत्न ने भाषा में लिखी है । रचनाकाल देखिये
सत्तर से ओगणयोत्तर समे, वदि तेरस मंगलवार | पोष मास पूर्वाषाढ़ में हर्षण योगे रे थयो हर्ष अपार ।
यह कृति जैनकथारत्नकोष भाग ५ में प्रकाशित है । नेमनाथ शलोको (५७ कड़ी) नामक रचना भी प्रकाशित है यह सलोका संग्रह
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१. मोहनलाल दलीचंद देसाई जैन गुर्जर कवियो भाग ५ पृ० ९८-९९ ( न० मं० ) ।
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