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________________ मरुगुर्जर हिन्दो जैन साहित्य का बृहद् इतिहास स्तवन, विमलगिरि स्तवन, कुलपाक आदि स्तवन सं० १७२६, कल्याणमंदिरध्रुपद और भक्तामर सवैया आदि रचनायें की हैं।' अरहन्नक रास का रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है-- संवत सत विडोत्तरइ वडखरतर गच्छवास, मणि महिमासागर हितवीनवे आणंदपुरे कहियो रास विलास । इसका एक पाठान्तर इस प्रकार भी मिलता है - संवत सत्तर चाडोत्तरी वडखरतरे गच्छवास, गणि महिमासागर गुरु हितकर आणंदि ते कहियो रासविलास । विडोत्तर और चाडोत्तर के कारण यह निश्चय नहीं हो पाता कि रचना सं० १७०२ की है अथवा १७०४ की। इसका आदि देखिए सरसति सामिणि वीनवं रे, प्रणमी श्री ऋषिराय, साधु शिरोमणि गुणनिलोरे, अरहनक सिरताज । . चौबीसी सं० १६१२ (चौबीस जिन गीत भास) आदित कुलगिर चन्द्रमा, संवत खरतर वाण, चउबीसे जिन वीनव्यां, आतमहित मन आण । जिन वर्द्धमान मया करो, चउवीसमा जिनराय । महिमासागर वीनती आणंदवर्द्धन गुणगाय । प्रथम रचना अरहन्नकरास - जैन संञ्झाय संग्रह (सारा भाई नवाब) और अन्यत्र से भी प्रकाशित है। चौबीसी नामक दूसरी रचना चौबीसी बीसी संग्रह और स्तवन मंजूषा में प्रकाशित है। चौबीसी का आदि इस प्रकार है आदि जिणंद मया करू, लाग्यो तुम्ह शृं नेहा रे, दिन रयणी दिल में बसे, ज्यूँ चातक चित्त मेहा रे।' आदि की इन दो पंक्तियों से ही इतना पता लग सकता है कि कवि भक्त है और सहृदय भी। भक्त कवियों में भगवान और भक्त के सम्बन्ध को चातक और मेघ द्वारा दर्शाया गया है। इनकी अन्य स्तवन सम्बन्धी रचनायें भी भक्तिभावपूर्ण हैं और कवि की भावुकता १. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० १०६-०७ २. श्री देसाई—जैन गुर्जर कविओ भाग २ पृ० १२४-२५, १४९ (प्र० सं०) भाग ३ पृ० ११८० और ११९९ (प्रथम संस्करण) ३. वही भाग ४ पृ० ६७ (नवीन संस्करण) Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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