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हेमकवि
५४९ लगा था। इस प्रकार की गजले गुलाबविजय, मनरूप और लावण्य कमल आदि कवियों की उपलब्ध है।' जोधपुर गजल के लेखक सम्भवतः मदनयुद्ध के लेखक हेमकवि से भिन्न हैं।
पांडे हेमराज - आप दिगंबर मुनि रूपचंद के शिष्य थे। इनका जन्म सांगानेर (जयपुर राज्यान्तर्गत) में हुआ था, परन्तु ये कामागढ़ में बस गये थे । वहाँ के शासक उस समय कीर्तिसिंह था । इन्होंने अपने गुरु से जैन सिद्धांत शास्त्रों का गहन अध्ययन किया और प्रगाढ़ पंडित हो गये थे। ये संस्कृत और प्राकृत के पारंगत विद्वान् थे किन्तु हिन्दी में ही लिखते थे। इन्होंने प्रवचनसार की भाषाटीका सं० १७०९, परमात्म प्रकाश की सं० १७१६ में, गोम्मटसार कर्मकांड की सं. १७१७ में, पंचास्तिकाय की १७२१ में और नयचक्र की भाषाटीका सं० १७२६ में लिखी। इन सबमें लेखक के पुष्ट गद्य के प्रणाम मिलते हैं। इन लेखकों की गणना हिन्दी साहित्य के गद्य ग्रंथकारों में न किए जाने से हिन्दी गद्य का इतिहास बीसवीं शती से प्रारंभ किया जाता है जबकि जैन टीका, टब्बा आदि में वह काफी पहले से मिलने लगता है।
गद्य लेखक के साथ आप अच्छे कवि भी थे। आपने प्रवचनसार का पद्यानुवाद भी किया है। इसकी पद्य संख्या ४३८ है। इन्होंने
अरपाल की प्रेरणा से सितपट चौरासी बोल की रचना की जिसके उत्तर में यशोविजय ने दिक्पट चौरासी बोल लिखा था। उन्होंने (यशोविजय) लिखा है ---
हेमराज पाण्डे किये, बोल चुरासी फेर,
था बिध हम भाषा बचन, ताको मत किये जेर ।' सितपट चौरासी बोल अभी अप्रकाशित है ।
आपने मानतुंग कृत भक्तामर स्तोत्र का सुंदर पद्यानुवाद किया । अनुवाद होते हुए भी इसमें मौलिक काव्य जैसी सरसता है। आपकी अन्य रचनाओं में हितोपदेश बावनी, उपदेश दोहाशतक और गुरुपूजा उल्लेखनीय हैं । उनकी कविताओं पर वाणारसिया संप्रदाय का प्रभाव स्पष्ट लक्षित होता है। सितपट चौरासी बोल की कविता का एक ममना देखिये१. राजस्थान का जैन साहित्य, पृ० २८३ । २. वशोविजय-दिक्पल्ट चौरासी बोल १५९ वा पद्य ।
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