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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास कवि अपना नाम प्रायः हीरमुनि ही लिखता है और इसकी गच्छ परम्परा भी स्पष्ट ज्ञात है इसलिए यह ऊपर के हीरानंद से भिन्न कवि है । इनकी दूसरी रचना है - उपदेश रत्नकोश कथानके अमृत मुखी चतुष्पदी ( ३२ ढाल ७०० कड़ी सं० १७२७ आसो शुदी २, मेदिनीपुर या मेड़ता ) का आदि -- ५४६ श्री आदि सरि आदि धुरि, अतिशयवंत अधीश, चउवीसे जिन चोपस्युं वंदु विसवा बीस । कवि कथा का सार बताता हुआ कहता है- श्रोता मनि आदर सरस, वक्ता मनि विस्तार, बिहु मनि आनंद ऊपजइ, तो सरस कथारस सार । रचनाकाल संवत सतर सत्तावीसमि अति भलो आसू मास ललना, द्वितीया तिथि चढ़ती कला, मंगलिक दिन उल्हास ललना । इस रचना में भी वही गुरुपरंपरा बताई गई है जो सागरदत्त रास में बताई गई थी । इसलिए इन दोनों रचनाओं के कर्त्ता हीरमुनि लोंकागच्छीय हीर या हीराणंद है ।" अगरचन्द नाहटा ने इन दोनों रचनाओं का उल्लेख किया हैं लेकिन उन्होंने उद्धरण नहीं दिया है । " हीर उदयप्रमोद आपके गुरु सूरचन्द वाचक थे 1 आपने सं० १७१९ में अपनी रचना 'चित्रसंभूति चोढालीउ' जैसलमेर में पूर्ण की । अन्य विवरण उद्धरणादि अनुपलब्ध हैं । होरसेवक ( हरसेवक) ने मयणरेहा रास या संञ्झाय सं० १७७४ कुकड़ी में लिखा । इसका भी विवरण - उद्धरण अनुपलब्ध है । इसका १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ४, पृ० ३४३३४६ (न०सं०) | २. अगरचन्द नाहटा परंपरा पृ० ११३ । ३. मोहनलाल दलीचन्द देसाई - जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२१५ ( प्र ० सं ० ) । ४. वही भाग १, पृ० १७ (प्र०सं०) भाग ३, पृ० १४२२ ( प्र०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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