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________________ होराणंर हीराणंद नामधारी कवि की एक रचना 'नेमिनाथ संञ्झाय (२१ कड़ी) का भी उल्लेख मिलता है जिसके आदि की पंक्ति है उत्राधेन मन्झारि कहियो स्वामी बीर जिणो। और अन्तिम पंक्ति है - भणिइ हीरानन्द सति करो।' पता नहीं ये हीरानन्द और ऊपर वाले हीराणंद एक ही हैं अथवा भिन्न-भिन्न ? यह शोध का विषय है । हीराणंद हीरमुनि--आप लोंकागच्छीय (गुजराती गच्छ) वीरसिंह 7 जैमलजी>झंझण 7 तेजसी के शिष्य थे। आपने 'सागरदत्त रास' (४५ ढाल ७०४ कड़ी सं० १७२४ विजयादसमी, जालोर) की रचना की, इसका आदिअगरचन्द नाहटा इसका रचनाकाल १७४४ बताते हैं --- श्री आदीसर आदि देवं अतुलीबल अरिहंत, चोवीसे वांदु चतुर भयभंजण भगवंत । यह दान के महत्व का प्रतिपादन करती है, यथा-- गाऊ तास पसाय गण, उगति अनूप उपाय, दान दीउ जिम देवदत्त, चरित रचं चितलाय । चतुर तणो चित रंजयण, कहिसु कथाकल्लोल, कविरस कौतिक कान दइ, ओ संभलो इलोल । रचनाकाल संवत वेद यूग जाणीई, मुनि शशि वर्ष उदार, मेदपाट माहे लिख्यो, विजइदशम दिन सार । गुरुपरंपरा --लंकइ गछ लायक यती वीर सीह जेमाल, गुरु झांझण श्रुतकेवली, थिवर गुणे चोसाल । श्री गछनायक तेजसी, जब लग प्रतपो भाण, हीर मुनि आसीस दइ, होजे कोडि कल्याण । अन्त - सरस ढाल सरसी कथा, सरसो सहु अधिकार, हीरमुनि गुरुनाम थी, आणंद हर्ष उदार । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई---जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ४०१-२ (न०सं०)। २. वही भाग २ पृ० २५८-२५१ और भाग ४ पृ० ३४३-३४६ (न०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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