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________________ ५३० मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह संघ शत्रुजय से लौटकर ऊना, देलवाड़ा, गिरनार, जूनागढ़ वीरमगाम होते हुए अहमदाबाद आया। वृद्ध लीलाधर संघवी ने वाचक सुखलाभ से दीक्षा ली और सं० १७१५ भाद्र शुदी ६ को स्वर्गवासी हए-- संवत सतर पनरोतरइ भाद्रवा सुदि सुविचार, निर्वाण लबधि लाभ निग्रंथ नो, छठि तिथि शुभवार । उनके स्वर्गवास के पश्चात् उनके पुत्र परिवार ने भी तीर्थयात्रायें निकाली, अर्बुदाचल की संघयात्रा भी निकाली। दूसरी संघयात्रा का समय इस प्रकार बताया है संवत सतर अकवीसे, मागसिर सुदि सुविचार, तिथि पंचमी सुभ वासरे, कीधो संघ उदार ।' यहाँ तक की संघ यात्राओं का वर्णन इस रास में किया है इसलिए रास की रचना इसके कुछ काल पश्चात् की गई होगी। इस रास में कवि ने न तो रचनाकाल दिया है और न गुरु परंपरा दी है। परन्तु इसमें आंचलगच्छ के कल्याणसागर सूरि का वंदन है इसलिए कवि का संबंध इसी गच्छ से रहा होगा। सुरजी (सुरसागर) ये भी आंचलगच्छीय साधु थे। इन्होंने 'जंबवती चौपाई' लिखी है। इसका रचनाकाल अज्ञात है। पता नहीं कि ये लीलाधर रास के कर्ता सुरजी हैं या कोई अन्य व्यक्ति । इस रास का आदि-अंत दिया जा रहा हैआदि-- पहिली ढाल सोहामणी जंबूवती अधिकार, जयराजानी कूमरी सीलवंत सुखकार । सील शिरोमणि सुंदरी रूपें अधिक रसाल, सो जंबवती जाणज्यो, परणी किसनकुमार । इसमें जांबवती के सतीत्व का वर्णन है, उसका विवाह श्रीकृष्ण से हुआ था। १. मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २०६-२०९ (प्र०सं०) और भाग ४ पृ० ११-३१३ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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