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________________ सुरकंद ५२९ लिया गया है। इसकी भाषा में व्रजभाषा का स्वाभाविक लालित्य और माधुर्य है । मरुगुर्जर का पर्याप्त प्रभाव भी परिलक्षित होता है। इसका रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है संवत सतर बत्रीसा वर्ष, शुभ मुहरत शुभवार रे; आसो सुदी ग्यारस रवि दिन, वर्धनपुर मझार रे ।' सुरजीमुनि --आपने सं० १७२१ के तत्काल पश्चात् किसी समय 'लीलाधर रास' की रचना की। इसमें संघवी लीलालाल की संघयात्रा का वर्णन किया गया है। अहमदावाद निवासी संघवी लीलालाल ने सौभाग्यसागर गणि के उपदेश से प्रेरित होकर शबंजय तीर्थ के लिए संघयात्रा निकाली थी। उस समय आंचलगच्छ के गच्छेश कल्याणसागर सूरि थे और वे राधनपुर में थे। दिल्ली में मुगल सम्राट अकबर का शासन था। कवि ने लिखा है लीलाधर लीला लहिर चोषु जेहनी चित्त, धरम कृत्य नित्यइ करइ पावइ परिधल वित्त । कवि का नाम इस पंक्ति में है मुनि सूरजी इणि परि भणइं, चिरंजीवो अह बाल । आदि-- ऋषभदेव प्रणमुं सदा, मंगलदायक देव, सुर असुर नर विविह परि, सारइ अहनिसि सेव । सांची देवी सारदा, आराधू निसि दीस, रिद्धि वृद्धि सुखसंपदा देज्यो मात जगीस । प्रकृति वर्णन सम्बन्धी ये पंक्तियां द्रष्टव्य हैं ऊंचा पर्वत सामरा, लम्वा वली अछेह; गिरि गह्वर गफा घणी, जाणइ कइड हूयो मेह। झरझर निर्झर करइ, बलबल बलकइ नीर, कोक पिक टुहु टुहु करइ, प्रेषित मन धन पीर । ठामि ठामि नदी बहइ, ठामि ठामि बनराय, ठामि ठामि चोकी धरइ, ठामि ठामि विश्राम बनाय । १. डा० लाल चन्द जैन -जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन पृ० ७० । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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