SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 522
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीदेव संवेग श्रुतधर साधु सुखकर आगम वयणे जे सुण्या, ज्ञानचंद गुरु सुपसाय थी, श्री देव मुनि ते संथुण्या ।' L इन बड़ी कृतियों के अलावा श्रीदेव ने राजलगीत, राजिमति रहनेमि संञ्झाय, धन्ना माता संवाद, धन्ना संञ्झाय, मेघकुमार सं० आदि कई सरस और भावपूर्ण छोटी रचनाएँ भी की हैं। उनकी मार्मिकता और भाषा सामर्थ्य का अनुमान आगे मिलेगा । राजिमति रहनेमि संञ्झाय (७ कड़ी) में रथनेमि को संबोधित करके कहती है दिए उद्धरणों से राजुल अपने देवर देवर दूरि खड़ा रहो, तेरा दिल फिरेगा, तेरा सीयल हटैगा, तो पापे पिंड भरेगा, देवर । झिरमर झिरमर मेह बरसइ तिणि थया घोर अंधेरा, राजिमती रहनेमी दोनुं एक गुफा उत्तारा दे । इसकी भाषा में खड़ी बोली हिन्दी का प्रारम्भिक प्रयोग दिखाई दे रहा है । इसके अन्त में कवि कहता है साधो संयम पाली दोनु पावई मोखि विशाला, कहे श्रीदेव सदा मुझ होज्यो वंदन वेग त्रिकाला | इसी प्रकार 'राजलगीत' (आठ कड़ी) भी छोटी किन्तु सरस कविता है । इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ आगे प्रस्तुत हैं ५०५ गोरव चड़ी राजल इम आखे, अवधारी रे, दरद हृदय कइसइ करि राखु मन मन मारी, छयल छबीले छत्र हुतइ सो छाड़ी चले निहारी । समुद्रविजय शिवादेवीय नंदन स्याम शरीर के धारी रे, नवभव के नेमीश्वर प्यारे तबही की मे प्यारी रे । धन्नामातासंवाद (११ कड़ी) इसमें धन्ना को जब वैराग्य हो गया तब वह माता से आदेश मांगता है जिनवचने वइरागीयो हो मे हो धन्ना मांगे मात आदेश । Jain Education International १. मोहनलाल दलीचंद देसाई -- जैन गुर्जर कवियो, भाग २, १०७५-७६ ( न० सं० ) । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy