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________________ ५०४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास शुभविजय-तपागच्छीय पुण्यविजय आपके प्रगुरु और लक्ष्मीविजय गुरु थे। इन्होंने सं० १७१३ आसो शुक्ल ५, बुधवार को संखेटकपुर में 'गजसिंह राजा रास' लिखा । रचनाकाल का इस प्रकार उल्लेख किया गया है संवत ससि सायर मेरु वह्नि से संवच्छर जांणो जी, आश्विन सित पंचमी बुधवारइ अनुराध रिष बखाणो जी। गुरुपरम्परा एवं अन्य आवश्यक सूचनायें निम्नलिखित पंक्तियों में हैं पंडित सकल शिरोमणि सुन्दर, पुन्यविजय गुरुराय जी, लक्ष्मीविजय पंडित वर केरो, सकल संघ नमि पाय जी। संषेटकपुर रही चोमासु, श्री गजसिंघ गुणगाया जी। सरस संबंध मे रास जांणिनी, रचियो मन उल्लास जी। शुभविजय कहिं सकल संघनी, नित नित फलज्यो आस जी।' श्रीदेव-आप ज्ञानचन्द के शिष्य थे। आपने अनेक रचनायें की हैं, उनका परिचय आगे प्रस्तुत है__'थावच्चा मुनि संधि' (सं० १७४९ माघ शुक्ल ७, जैसलमेर) इसे श्रीदेव ने अपने शिष्य कल्याण की सहायता से पूर्ण की थी। 'नाग श्री चोपाई' का आदि स्नान करी शुधोदकइ, वइस रसोडइ तेह, भाई तिने एकण, जीमै धरता नेह । अन्त- आया अवासे आपणो, विलसइ ते वंछित भोग, श्री देव कहे भद्र श्री धर्म थी, संपजइ सुख संजोग । साधु बन्दना पांच भरत पांच ईखइ जांण, पांच महाविदेह बखांण, जे अनंत हुवा अरिहंत, ते प्रणमुकर जोड़ि संत । अन्त (कलश)-- चौबीश जिनवर प्रथम गणधर चक्र हलधर जे हवा; संसार तारक केवली वली श्रमण श्रमणी संजुया । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० १७९-१८० (प्र०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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