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विश्वभूषण इनकी हिन्दी रचनाओं का परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है।
निर्वाण मंगल (१७२९)-इस छोटे से गीतकाव्य में निर्वाण और भक्ति विषयक गीत हैं।
अष्टाह्निका कथा (१७३८)- इसमें नंदीश्वर की भक्ति सम्बन्धी कथा है। आषाढ़, कार्तिक और फाल्गन के अंतिम आठ दिनों में यह पर्व मनाया जाता है । इन दिनों नंदीश्वर की पूजा की जाती है । आरती--(९ पद्य) की उदाहरणार्थ निम्न पंक्तियाँ देखें -- पहली आरती प्रभु की पूजा, देव निरंजन और न दूजा;
दुसरी आरती सिवदेवी नंदन, भक्ति उधारण करम निकंदन । नेमिजी का मंगल-यह रचना सं० १६९८ श्रावण शुक्ल अष्टमी की है। उस समय ये भट्टारक की गद्दी पर सम्भवतः नहीं थे, केवल मुनि थे । इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ इस प्रकार हैं - प्रथम जपो परमेष्ठि तौ हियो धरौ,
सरस्वती करहुं प्रणाम कवित्त जिन उच्चरौ। सोरठि देस प्रसिद्ध द्वारका अति बनी,
रची इन्द्र नै आइ सुरनि मनि बहु कनि । पार्श्वनाथ का चरित्र-यह आचार्य गुणभद्र के उत्तरपुराण पर आधारित रचना है। आदि- मनउ सारदा माई भजी गणधर चितु लाई ।
पारस कथा संबंध, कहौं भाषा सुखदाई । पंचमेरु पूजा--सुदर्शन, विजय, अचल, मंदिर और विद्युन्माली को पंचमेरु कहते हैं । इन्हीं की पूजा की विधि इसमें वर्णित है ।
जिनदत्त चरित (सं० १७३८) यह रचना जिनदत्त की भक्ति से प्रेरित है। इसका उल्लेख नाथूराम प्रेमी, मिश्रबन्धु और कामताप्रसाद जैन ने अपने-अपने ग्रंथों में किया है इससे इसकी महत्ता स्वतः स्पष्ट है। _ जिनमत खिचरी-यह छोटा सा मुक्तक काव्य है। कुल १४ पद्य हैं। इसमें दाम्पत्य भाव से आत्मा परमात्मा के भक्ति भाव को व्यक्त किया गया है । इसपर सूफियों के 'इश्क मजाजी से इश्क हकीकी' का
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