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________________ . ४८६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास साध्वी विबेक सिद्धि--इनका एक गीत 'विमलसिद्धि गुरुणी गीतम्' ऐतिहासिक रास संग्रह में प्रकाशित है जिससे ज्ञात होता है कि विमलसिद्धि मुल्तान निवासी मोल्हू गोत्रीय साहु जयतसी की पत्नी जुगता दे की पुत्री थी। उन्होंने साध्वी लावण्य सिद्धि से प्रवज्या ली थी और बीकानेर में उनका स्वर्गवास हुआ था। विवेकसिद्धि इनकी शिष्या थी और इन्होंने अपनी गुरुणी की स्तुति में यह गीत लिखा है। इसका निश्चित रचनाकाल तो ज्ञात नहीं हो सका पर इन गुरु-शिष्या का समय १८वीं शताब्दी का मध्यकाल है अतः इनका उल्लेख इसी शताब्दी में होना उचित है । इस गीत के आदि और अन्त की पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- आदि- गुरुणी गुणवंत नमीजइ रे, जिम सुख संपति पामीजइ रे। दुख दोहग दूरि गमीजइ रे, परमगति सुर साथि रमीजइ रे । अन्त-- विमलसिद्धि गुरुणी महीयइ रे, जसु नामइ वंछित लहीयइ रे। दिन प्रति पूजइ नरनारी रे, विवेकसिद्धि सुखकारी रे।' अनेक जैन साधु रचनाकारों के मध्य यदाकदा किसी साध्वी की उपस्थिति जैन संघ में साध्वियों के सुखद अस्तित्व का अनुभव कराती है। इनकी किसी अन्य रचना का पता नहीं चल पाया है। विश्वभषण--आप बलात्कारगण की अटेर शाखा के शीलभूषण > ज्ञानभूषण > जगतभूषण के शिष्य थे। इनकी भट्टारकीय गादी हथिकान्त में थी । यह जिला आगरा का एक प्रमुख स्थान था । इनके अनेक शिष्यों में ललितकीति विशेष उल्लेखनीय हैं। ये हिन्दी के कवि थे और जिनदत्तचरित, जिनमत खिचरी; निर्वाण मंगल अढ़ाई द्वीप आदि के अलावा इन्होंने कई पूजा और पदादि भी लिखे हैं। इन्होंने संस्कृत में मांगीतुंगी गिरि मंडल पूजा सं० १७५६ में लिखा । १. जैन ऐतिहासिक रास संग्रह, पृ० ४२२ । २. विद्याधर जोहरापुरकर-भट्टारक सम्प्रदाय, पृ० १३२ । ३. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों की ग्रंथसूची, भाग ४, पृ. ५० । www.jainelibrary.org Jain Education International For Private & Personal Use Only
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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