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________________ ४८२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचना का पूर्णकाल - शशि सागर ने दंत संवछरि, माधव मास कहेवायो, द्वितीया बुध दिन सिद्ध संयोगे, अनोपम रास निपायोरे। अंतिम पंक्तियाँ छसें अडसठि गाथा कहिये सरब संख्या कहिवायो, जिहाँ लगि धू ससि सायर दिनकर तिहां लगि अ थिरथायो रे ।' विबुधविजय II-आप तपागच्छ के प्रसिद्ध आचार्य हीरविजय> शुभविजय>भावविजय>ऋद्धिविजय>चतुरविजय के शिष्य थे। इन्होंने 'सुरसुन्दरी रास' (४० ढाल; ९५५ कड़ी सं० १७८१) लिखा, उसका प्रारम्भ देखिये-- श्री शत्रुजे गिर बडो, सवी तीर्थ सिरदार, पूर्व नवाण समोसर्या, ऋषभ जिनेस्वर सार । यह रास नवकार मन्त्र की महिमा स्थापित करने के लिए लिखा गया है। श्री नवकार तणे महिमाये, सुरसुन्दरी सुख पाई। कष्ट उपजी ने सुख हुओ, धरम तणे सोभाई। जैसे ग्राम कथाओं के अन्त में कहानी सुनाने वाला कहता था कि जैसे राजा का राजपाट लौटा तैसे सबका लौटे। उसी प्रकार प्रायः जैन रास भी इस दृष्टि से सुखांत हैं। व्रतकर्ता या धार्मिक श्रावक श्राविका अंत में तमाम कष्टों को पार कर सुख पाते और मोक्ष जाते हैं । इसका रचनाकाल इन पंक्तियों में बताया गया है-- संवत ससी सेला मुधर चैक, मास मुनीसर सारो रे, अजुआली ससी ने नेग्नीइं, वार भलो दधीना सुतनी सुनो धारो रे । गुरुपरम्परा में कवि ने हीरविजय के साथ उन सबका उल्लेख किया है जिनका पहले नाम दिया गया है। विबुधविजय जी अपनी १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, प० २७८-७९; भाग २, पृ० १२७८(प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ४५०-५१ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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