SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 496
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विनोदीलाल ४७९ है। पंचकल्याणक कथा, नौकाबंध, सुमति-कुमति की जाखड़ी, सम्यक्त्व कौमुदी (सं० १७४९), विष्णुकुमार मुनिकथा और श्रीपाल विनोद कथा आदि इनकी उपलब्ध कृतियाँ हैं।' इन सबका विवरण और उद्धरण देकर विवरण का कलेवर बढ़ाना उचित नहीं है। भक्तामर स्तोत्र कथा भाषा में ३८ कथायें हैं। सम्यक्त्व कौमुदी का विवरण डा. कस्तूरचन्द कासलीवाल ने ग्रन्थसूची में दिया है। इन तमाम विवरणों से यह प्रमाणित होता है कि विनोदीलाल १८वीं शताब्दी उत्तरार्द्ध के सशक्त जैन कवि थे जिन की भाषा प्रायः हिन्दी है और यत्रतत्र राजस्थानी का पुट है। उनकी काव्यशैली पर हिन्दी साहित्य के रीतिकालीन काव्यशैली, छंद और काव्यरूपों का पर्याप्त प्रभाव दिखाई पड़ता है, किन्तु भाव सर्वथा जैन धर्मानुकल भक्तिभाव प्रधान है न कि संयोग शृंगारमय; शृंगार का प्रयोग भी विप्रलंभपक्ष में ही हुआ है इसलिए उसमें मांसलता के बजाय आध्यात्मिकता अधिक है। विमलरत्न सूरि -ऐतिहासिक जैन काव्यसंग्रह में 'जिनरतन सूरि गीतानि' शीर्षक के अन्तर्गत पाचवाँ गीत 'निर्वाणगीत' है । ९ कड़ी का यह गीत विमलरत्न कृत है। इसकी दो पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत कर रहा हूँ-- युगप्रधान श्री पूज्य जी, श्री जिनरतन सुरिंद सयलं संघनइ सुखकरु, विमलरतन आणंद । यह रचना जिनरत्न के निर्वाण पर लिखी गई है अतः यह १८वीं शती की रचना है परन्तु इसका निश्चित रचनावर्ष ज्ञात नहीं है। विमल विजय तपागच्छीय विजयप्रभ सूरि के शिष्य थे। इन्होंने विजयप्रभ सूरि निर्वाण स्वाध्याय (३८ कड़ी) की रचना की। इसमें रचनाकाल नहीं है किन्तु विजयप्रभ सूरि ने सं० १७४९ में ऊना में शरीरत्याग किया था, इसके कुछ ही काल पश्चात् यह रचना हुई होगी। इसका प्रारंभ इन पंक्तियों से हुआ है-- १. डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों को ग्रन्थ सूची, भाग ३, पृ० ३२६ और वही भाग ४, पृ० २५२ और ४४० । २. ऐतिहासिक जैन काव्य संग्रह-जिनरत्न सूरि गीतानि । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy