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________________ factors ४७५ विनोदी लाल आप साहिजादपुर के रहने वाले थे। अपनी मातृभूमि की प्रशंसा इन्होंने मुक्तकंठ से की है । उस समय औरंगजेब दिल्ली का बादशाह था; कवि ने उसकी भी प्रशंसा की है; उदाहरणार्थ कुछ पंक्तियाँ प्रस्तुत है --शाहिजादपुर की प्रशंसा- कौशल देश मध्य शुभ थान, शाहिजादपुर नगर प्रधान । गंगातीर बसै शुभ ठौर, पटतर नाहिं तासु पर और । औरंगजेब की प्रशंसा- नौरंग साहिबली को राज, पातसाह सब हित सिरताज । दिल्लीपति तय तेज दिनेस । इत्यादि । सुख विधान सक बंधनरेस, ये पंक्तियाँ 'भक्तामर भाषा - कथा' से ली गई है जिसकी रचना कवि दिल्ली में की थी । ये गर्ग गोत्रीय अग्रवाल वैश्य थे, परन्तु मिश्र बन्धु विनोद में इन्हें न जाने क्यों हीन श्रेणी का बताया गया है। ये नेमिश्वर के भक्त थे और अधिकांश रचनाएँ इन्होंने उनके उदात्त चरित्र को ही आधार बनाकर की है । ऐसी रचनाओं में नेमिराजुल बारहमासा, नेमिब्याह, राजुलपच्चीसी, नेमिजी रेखता और नेमिजी का मंगल आदि उल्लेखनीय हैं । इनके अलावा उन्होंने 'चतुर्विंशति जिन स्तवन सवैया', नौकाबन्ध, प्रभात जयमाल, फूलमाल पच्चीसी, रत्नमाल, श्रीपाल विनोद, और भक्तामर भाषा आदि अनेक काव्य ग्रंथ लिखे हैं । भक्तामर भाषा संस्कृत के भक्तामर स्तोत्र का छायानुवाद है इसी प्रकार 'श्रीपाल विनोद' भी अनुवाद है किन्तु शैली मौलिक एवं सरस है । नेमिराजुल बारहमासा बारहमासा संग्रह पृष्ठ २२ से ३० पर प्रकाशित रचना है । इसके प्रकाशक हैं जैन पुस्तक भवन, कलकत्ता । इस बारहमासे में राजुल अपना विरह दुख व्यक्त करने की अपेक्षा मि के दुख दर्द पर अधिक ध्यान देती है। सावन आने पर वह प्रिय से कहती है कि सावन में व्रत मत लो १. प्रकाशक - - नागरी प्रचारिणी सभा काशी - हस्तलिखित ग्रन्थों का वार्षिक बारहवाँ विवरण, परिशिष्ट २ पृ० १५७४ । २. मिश्रबन्धु विनोद, भाग २, पृ० ५१५ | Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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