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________________ ४७४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास यह प्राचीन स्तवन रत्न संग्रह भाग २ और सलोका संग्रह में प्रकाशित है। नेमिनाथ शलोको (६५ कड़ी) की कुछ पंक्तियाँ उदाहरणार्थ प्रस्तुत हैंसरसति समरु बे कर जोड़ी, यादव जोरावर छप्पनकुल कोड़ी, ते मांहि ठाकुरे काहान कहवाइ, मथुरा मूकी ने दुवारिकां आवइ । द्वारावती ने मथुरा नो आगे; * यस जोड़ तो बहु दिन लागे, चढ़तो शलोको सबल थाये, नाहना निरबोधी वतीत भणाय । अष्टापद शलोको (५५ कड़ी) की अंतिम पंक्तियाँपूरो पंडित ते विचारे जोई, जूनो शास्त्र तो झूठो न होई । गुरुना वचन थी वांची ने जाण्यो, ते माटे म्हें तवन में आण्यो। श्री विजेरतन सूरि गछनायक वारे, चोसठमे पाट श्री पूज्य त्यारे । कहे विनीतविमल कर जोड़ी, अ भणतां आवे संपत दोंड़ी। इनके अलावा विमल मन्त्रीसर नो शलोको (१११) में विमल मन्त्री की कीर्ति वर्णित है। इसकी प्रारंभिक पंक्तियाँ देखें..... सरसति समरु बे कर जोड़ी, बांदु वरकाणों गिरनार गोड़ी, जाई सेज संखेसर दोड़ी, कविता नेउ से कल्याण कोड़ी। मरुधर मांहे तो तीरथ ताजा, आब नवकोटि गढ़ नो राजा, ग्राम गढ़ ने देवल दरवाजा, चोमुष चंपो ने ऊपरे छांजा ।' इन शलोको के अलावा एक छोटी रचना 'शांतिनाथ स्वाध्याय' (७ कड़ी) भी उपलब्ध है। १. जैन गर्जर कवियो, भाग २, पृ० ३८३ और भाग ३ पृ० १३४३-४५ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ७३-७५ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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