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लोहट (शाह) रचनाकाल -लाख पचीस निन्याणव कोटि एक अवबुध लीज्यो जोड़ि
सो रचना लख ज्योन लाय, जैत्रग कदे धरु बनाय ।' डॉ० कासलीवाल ने 'षट्लेश्या वेलि' का रचनाकाल सं० १७३० बताया है। परन्तु अन्तर्साक्ष्य हेतु मूल पाठ की संबंधित पंक्तियां नहीं दी हैं फिर भी अन्यत्र इसका रचनाकाल १९३५ से पूर्व प्राप्त प्रति के आधार पर ही बताया गया है इसलिए सं० १७३० मानने में कोई आपत्ति नहीं है। इस प्रकार इनकी प्रायः आधा दर्जन रचनाएँ उपलब्ध हैं जो प्रबन्ध काव्य से लेकर रासो, चौपई, वेलि आदि नाना काव्य रूपों में आबद्ध हैं। इनका रचनाकाल सं० १७२१ से लेकर ३६ तक फैला है । रचनाकाल में अन्तर मिलता है। यशोधर चरित में रचनाकाल ऐसे विचित्र ढंग से बताया गया है कि कुछ विद्वान् जोड़ घटाकर सं० १७२५ और कुछ सं० १७२१. बताते हैं, पर विशेष अन्तर नहीं है।
वछराज-लोकागच्छ के लेखक थे । इन्होंने सं० १७४९ में 'सूबाह चौढालियु' की रचना बीकानेर में पूर्ण की। इसका अन्य विवरण और उद्धरण कहीं नहीं प्राप्त हुआ।
वधो-पीपाडो श्रावक, इन्होंने कुमति नो रास अथवा संञ्झाय अथवा प्रतिमा स्थापन गीत अथवा महावीर स्तवन की (३९ कड़ी) रचना सं० १७२४ श्रावण शुक्ल षष्ठी को सोजत में की। इसका आदि पहले प्रस्तुत है--
श्री श्रुतदेव तणे सुपसायें, प्रणमी सद्गुरु पाया; श्री सिद्धांत तणे अणुसारें, सीख देउ सुखदाया रे। कुमति । कां प्रतिमा ऊथा,
मुगध लोक ने भामे पाडी पिंड भरे छे पायें-आंकणी। १. सम्पादक डा० कस्तूरचन्द कासलीवाल--राजस्थान के जैन शास्त्रभंडारों ___की ग्रंथसूची, भाग ३, पृ० १६९-७० । २. वही भाग ४, ५० ५५ । ३. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० ११४ और मोहनलाल दलीचन्द देसाई
जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १३४७ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ७५ (न०सं०) ।
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