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________________ ४५२ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास अंत-संगम सुर प्रेरित सुरश्यामा, मनमथ सेना आवी, सन्मुख प्रभु स्युं छल वाहे ने, बोले नेह जगावी, प्रीतम लीजे रे आ यौवन चो लाहो, आंचली।' लावण्यविजय (तपागच्छ) ने योगशास्त्र बालावबोध सं० १७८८ में लिखा है। इनकी गुरुपरंपरा नहीं विदित है लेकिन अन्य अनुमानों के आधार पर ये चौबीसी के कर्ता लावण्य विजय ही हो सकते हैं । ' लोहर(साह)-इनके पिता बूंदी निवासी बघेरवार वैश्य धर्म थे । इन्होंने सेवक को अपना गुरु बताया है। इनके दो बड़े भाई हींग और सुन्दर थे। इनकी प्रारम्भिक रचना 'अढाई को रासो' (सं० १७३६) में मैना सुन्दरी और श्रीपाल की कथा २२ छन्दों में वर्णित है। दूसरी रचना 'चौढालियो' (सं० १७८४) ५० छन्दों की है। इन दोनों से पूर्व सं० १७३५ में 'षट्लेश्या बेलि' और प्रसिद्ध कृति (सं० १७२५ में रचित) यशोधर चरित प्राप्त है। डॉ० लालचंद जैन ने यशोधर चरित का रचनाकाल सं० १७२१ बताया है। यह सरस और सुन्दर कृति है। इसमें यशोधर के चरित्र का दृष्टान्त देकर जीवदया का सिद्धांत प्रतिपादित किया गया है। कुछ पंक्तियाँ देखें -- मै मतिसारु वर्णन कीयौ, चरित यशोधर परिचय दीयौ, सुगम पंथ लषि लागौ बाट, कीनी सरस चौपइ थाट । भविजन कथा सूनो दै कान, तां प्रसादि पावै सूरथान, जीवदया उपजै अधिकार, सो संसार उतारै पार ।' इनकी एक अन्य कृति 'चौबीस ठाणा चौपई' है जिसका रचनाकाल सं० १७३९ मगसिर शुक्ल ५ है। रचना १३०० चौपाइयों में आबद्ध है। इसमें भी कवि ने पिता का नाम धर्मा (धर्म) बताया है। पं० लक्ष्मीदास के आग्रह पर यह सरल भाषा में रचना की गई है। आदि --- श्री जिन नेमि जिनंद चंद वंदिय आनंद मन, सिध सुध अकलंक व्यंक सर भरि मयंक तन । १. मोहनलाल दलीचंद देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १४०६-७ और भाग ५, पृ० २१०-२११ (न०सं०)। २. वही भाग ३, पृ० १६४१(प्र०सं०) और भाग ५, पृ० ३३८ (न०सं०)। ३. डा० लालचन्द जैन -जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन, पृ० ६८। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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