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________________ ४३४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास आगे दिया जा रहा है। वीशी (सं० १७८०, विजयदशमी, गुरुवार) का आदि इस प्रकार है सुजन सुजन सोभागी बाहलो होजी, मोहन सीमंधर स्वामी । इसका रचनाकाल इस प्रकार बताया गया है .... आकाश (वसु) सागर विधु वर्षे विजयदशमी जाणे रे, गुरु वासर अति मनोहर, बीसी चढ़ी परमाण रे । चौबीसी जिनस्तवन इसमें २४ जिनवरों का स्तवन है। इसके अन्त में गुरु को सादर स्मरण किया गया है, यथा वीर धीर शासनपति साचो, गातां कोडि कल्याण; कीर्ति विमल प्रभु परम सोभागी, लक्ष्मी वाणी प्रमाणु रे ।' इसका मंगलाचरण इन पंक्तियों से शुरू हुआ हैतारक ऋषभ जिनेसर तु मिल्यो, प्रत्यक्ष पोत समान हो, तारक जे तुझनि अवलंबिया, तेणे लहुं उत्तम स्थान हो । यह चौबीसी प्राचीन स्तवन रत्नसंग्रह भाग २; ११५१ स्तवन मंजूषा और चौबीसी बीशी स्तवन संग्रह में प्रकाशित है। ____ लक्ष्मी विमल ने गद्य में 'सम्यक्त्वपरीक्षा बालावबोध सं० १८१३ में लिखा । इससे पता लगता है कि आप का रचनाकाल १८वीं के उत्तरार्द्ध से १९वीं शती के प्रथम चरण तक फैला था। जैन गुर्जर कवियो भाग १ प्रथम संस्करण में इन्हें १७वीं शती के कवियों में रखा गया था किन्तु उक्त ग्रन्थ के नवीन संस्करण में उसके संपादक ने इन्हें १८वीं शती का कवि बताया है। साथ ही प्रथम संस्करण में इनकी बीशी को इनके गुरु कीर्तिविमल की रचना वताया गया था, वह भी नवीन संस्करण के संपादक जयंत कोठारी की दष्टि में गलत था और वे बीशी को लक्ष्मीविमल की ही रचना मानते हैं । जो हो, इतना निश्चित है कि लक्ष्मीविमल १८वीं शती में रचनायें कर रहे थे और अधिकतर कार्य इसी शती में पूर्ण किया था, अतः वे प्रधानतया १८वीं शती के लेखक हैं और गद्य तथा पद्य दोनों विधाओं के समर्थ लेखक हैं। १ जैन गुर्जर कवियो-भाग १, पृ० ५९६ और भाग ३ पृ० १०८८, १४४३, १४६५, १६६८(प्र०सं०) तथा वही भाग ५, पृ० ३०९-३१० (न०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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