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________________ राजसार ३९९ इनकी अन्य दो रचनाओं का विवरण-उद्धरण न तो नाहटा ने और न देसाई ने ही दिया है। मुझे उनकी हस्तप्रतियां नहीं प्राप्त हो सकी इसलिए उनके उद्धरण देना सम्भव नहीं हो सका। राजसुन्दर--ये खरतरगच्छीय हीरकीर्ति 7 राजहर्ष>राजलाभ के शिष्य थे। इन्होंने सं० १७७२ मागसर शुक्ल अथवा सं० १७७३ में 'चौबीसी' की रचना की। नाहटा ने चौबीसी का रचनाकाल सं० १७७२ बताया है। इसमें २५ स्तवन हैं। इसके छः पत्रों को एक प्रति महिमा शक्ति भण्डार में उपलब्ध है। यद्यपि नाहटा जी ने रचनाकाल संबंधी कोई उद्धरण नहीं दिया है, परन्तु यह निर्णय उन्होंने किसी आधार पर लिया होगा। देसाई ने भी रचनाकाल सं० १७७२ बताया है किन्तु उन्होंने भी उद्धरण नहीं दिया है। उन्होंने सं० १७७३ में क्षमाधीर द्वारा लिखित प्रति का हवाला दिया है। जैन गुर्जर कवियो के प्रथम संस्करण भाग ३ पृ० १४२३ पर कोई रचनाकाल नहीं दिया था, किन्तु नवीन संस्करण के सम्पादक ने सं० १७७२ दिया है, साथ ही उसे शंकास्पद भी बताया है। जो हो, यह रचना सं० १७७३ से पूर्व की अवश्य हैं। क्षमाधीर राजलाभ गणि के शिष्य थे। उन्होंने यह प्रति अहमदाबाद में सं० १७७३ चैत्र शुक्ल द्वितीया को लिखी थी। इसके आदि की पंक्तियाँ निम्नांकित हैं-- सरस वचन द्यो सरसति, गायसुं श्री जिनराय, सनेही साहिवा। आदे आदि जिनेसरु, तारण तरण जिहाज, सनेही साहिबा। सखीय सहेली सवि मिली, पूजै प्रथम जिणंद, __ सनेही साहिबा। राजलीला अविचल सदा, गावौ गुण भागचंद, सनेही साहिबा। १. अगरचन्द नाहटा--परंपरा पृ० ९९ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १४२३ __ (प्र०सं०) और वही भाग ५, पृ० २८८ (न० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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