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________________ रेधुनाथ इसका आदि-- वर्तमान चउवीस नै नमतां नवनिध थाय, त्रिभुवन सुखदायक तिके, जगनायक जिनराय । नंदिषेण नामे मुनी, परसिद्ध तास प्रकास, वचनकला सारु विवुध, आखे मन उल्लास । इस रचना में रचनाकार ने अपना नाम रघुपति दिया है, यथा ---- रघुपति निजमन नी रुली, जुगति कथा मन जाणी रे, मतिसारु कीधी मुदे, सुकवि नरां सहिनाणी रे । चरित्र कथा रस चौपइ, रचतां रंग रसालो रे, सुणतां भणतां संपजे, नवनिधि मंगल मालो रे । श्रीपाल चौपई (सं० १८०६. प्रथम भाद्र शुक्ल १३ घडसीसर) इसमें श्रीपाल और मैनासुन्दरी की प्रसिद्ध जैन कथा दी गई है। कवि ने अपना नाम रुधपति लिखा है। गरुपरम्परा पूर्ववत् इसमें भी है। रचनाकाल - . संवत रस सिब सिद्ध ससी अ, सुदि पख तेरस सार, प्रथम भाद्रव तणी अ, कीध चरित्र उदार । मैना सुन्दरी के शीलपालन का वर्णन करता हुआ कवि कहता है पाल्यो सील भली परे ओ, मयणसुंदरी नार, चरित्र श्रीपाल नो ओ, जग में जस विस्तार। इसमें कवि रुधपति ने जिनसुख को अपना प्रगुरु बताया, यथा श्री जिनसुख सूरीदं ना ओ, विनयी विद्यानिधान, कहे रुधपति कवी अ, महिम जिनध्रम मान । रत्नपाल चौपई आदि-- स्वति श्री प्रभु पास जिन, त्रिभुवन सुख दातार, पहिला तेहना प्रणमतां, जग में जस विस्तार । रचनाकाल निधि ससि सिद्ध अलख ने अंके, संवत ओ निस्संके जी कालू गांम नयर आसंके, दीपे गजसिंघ उकेजी।' १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० ३४२-३४७ (प्र०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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