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________________ ३८० मेरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास च्यार कषाय मे चउगणा, वरजउ आणि विवेक, मित्रानंद अमरदत्त जिम, कीधा करम अनेक ।' श्री अगरचन्द नाहटा ने उपरोक्त तीन रचनाओं के अलावा इनकी चौथी रचना चित्रसेन पद्मावती चौपाई की भी सूचना दी है। उनके पास अमरदत्त मित्रानंद रास और चित्रसेन पद्मावती चौपाई की अपूर्ण प्रतियाँ होने के कारण सही रचनाकाल एवं अन्य विवरण नहीं दे सके । श्री देसाई ने सनतकुमार चौपाई का रचनाकाल सं० १७३६ श्रावण शुक्ल ११ बताया है किन्तु इसका कोई प्रमाण स्वरूप उद्धरण नहीं दिया है। यशोवर्धन--खरतरगच्छीय क्षेम शाखा के रत्नवल्लभ आपके गुरु थे। इनके चार ग्रंथों की सूचना श्री नाहटा ने दी है-रत्नहास रास (चौपाई) सं० १७३२, चन्दन मलयागिरि रास सं० १७४८ रतलाम; जम्बू स्वामी रास सं० १७५१, विद्याविलास रास सं० १७५८, बेनातट। नाहटा ने किसी रचना का उद्धरण नहीं दिया; श्री देसाई ने चंदन मलयागिरि रास का विवरण-उद्धरण दिया है। यह रचना यशोवर्धन ने ३२ ढालों में सं० १७४७ श्रावण शुक्ल ६ रतलाम में की थी। नाहटा और देसाई के रचनाकाल में एक वर्ष का अन्तर है किन्तु देसाई ने अपने कथन के प्रमाणस्वरूप ग्रन्थ से सम्बन्धित पंक्तियाँ उद्धृत की हैं, यथा-- संवत सतर सैताले वरसै, श्रावण सुदि छठि दिवस जी, ओ संबंध रच्यो अति सरसै, सुणता सहुमन हरसैं जी। इसलिए इन्हीं की बताई सूचनाएँ प्रामाणिक प्रतीत होती है। इसमें खरतरगच्छ के जिनचन्द सूरि का वन्दन है, तत्पश्चात् खेम शाखा के सुगुणकीति और रत्नवल्लभ को सादर नमन किया गया है। यह रचना रतलाम में हुई, यथा-- श्री रतलाम सहर सुखकारी, अलकापुर भवतारी जी, सा वैसावी समकित धारी, गुरु भगता गुणधारी जी । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १३२१ २३ (प्र०सं०) और भाग ५, पृ० २४-२६ (न०सं०) । २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० १०२ । ३. वही, परंपरा पृ० १०२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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