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________________ २७४ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास रचनाकाल-विधिमुख शिवमुख ऋषि इन्दु संवत संज्ञा अही जी, __ मास पोस वदि तेरस दिवसे उसनानार गुणगेहे जी । इसमें ऊपर दी गई गुरुपरम्परा का उल्लेख किया गया है। यह रचना भीमसिंह माणेक द्वारा प्रकाशित की गई है। हरिवाहन राजा रास (३१ ढाल, सं० १७५७(८) कार्तिक कृष्ण ९, शुक्र, महेसाणा) आदि-परमानंदमइ प्रभु चिद्रूपी विज्ञान; जगहित धर्ता ज्योतिमय, तेहनो धरिइं ध्यान । इसमें राजा हरिवाहन के निर्वेद की प्रशंसा की गई है, यथा नीरवेद जो अनुभव्यो नृप हरीवाहने पवित्र, सूष पाम्यौ तिणे सास्वती, सांभलज्यो मे चरित्र । रचनाकाल संवत १७ संयम गीरी पांउव मीते, वर्षे वर्षा धूरी मासाकितें, (चाली) मास पहिलो सरद ऋतु नो असीत पक्ष प्रलक्ष । रत्नपाल रास (४ खण्ड ६६ ढाल १३८९ कड़ी सं० १७६० मागसर शुक्ल ५, गुरुवार, अणहिलपुर, पाटन) आदि-सकल श्रेणि मेदुर (मदुलीला) तणी, दायक अनुदिन जोह; ते जे कोई रूप छे, तेह थीं धरेई नेह । भगवान के बारे में कवि लिखता है नित्य अरूपी दिण नथी, छे रूपी भगवान; निकट घणी जो नवि लखे यथा नयन जुगकान । अध्यातम आवास में, अनुभव मोख प्रत्यक्ष; ज्ञान नयन थी ऊपने, तिहां जस रूप प्रत्यक्ष । यह रचना दान के माहात्म्य का दृष्टांत प्रस्तुत करती है, यथा दान ऊपर संबंध अथ कहिस प्रमाद निवार, रत्नपाल केरु चरित, सुणो सहु करि मन ठार । रचनाकाल-संवत खांग संयम करी जाणो, मागसिर मास सुहायो जी; तिथी पंचमी गुरुवार तणे दिन, विजय मुहूर्त मन भायो जी। इसमें भी गुरुपरंपरा पूर्ववत् दी गई है। ये सभी रचनाएँ काफी लोकप्रिय रही हैं और अनेक ज्ञानभण्डारों में इनकी कई प्रतियाँ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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