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________________ मानसिंह 'मान' ३६७ नामक ऐतिहासिक वीरकाव्य की रचना की। यह पुस्तक नागरी प्रचारिणी सभा, काशी से प्रकाशित है। इसके अलावा महाकवि बिहारी कृत बिहारी सतसई की टीका लगभग ४५०० छन्दों में पूर्ण की है। मुनिविमल--इसकी गुरुपरम्परा और अन्य वृत्त ज्ञात नहीं है। इन्होंने शाश्वत सिद्धायतन प्रतिमा संख्या स्तवन (२९ कड़ी) सं० १७४२ से पूर्व ही लिखी जिसके आदि और अन्त की पंक्तियाँ प्रस्तुत की जा रही हैं। आदि-- सिरि रिसह जिणेसर वद्धमान, चंदायण निम्मल गुण निहाण; सिरि करिसेण तिहुअण दिणिंद, अणि नामि चउसासय जिणिंद । अन्त--ईस सुरनर मुनि वंदी अ सासय सिध्यायतन बखाण्यां, अंग उपांग वृत्ति प्रकरण थी, सद्गुरु वयणे जाण्यां । मुनि विमल करजोड़ी वीनवइ, प्रणमी तुमचा पाय, सासय सुह संतति केरो मुझ जिनजी करउ पसाय । इसकी भाषा को जानबूझ कर प्राकृताभास बनाने का प्रयास किया गया है। मेघविजय आप लाभविजय के प्रशिष्य तथा गंगविजय के शिष्य थे। आपने वजीरपुर में सं० १७३९ में चौमासा किया और उसी समय एक 'चौबीसी जिन स्तवन' लिखा जिसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नवत् हैं-- आदि--अलबेलो आदिल सेवीइ रे, हाजी, पेली सुनंदा सुमंगला को कंत, अरुडो। मरुदेवा रो नंद, ओ रुडो, दीठई परमाणंद, ओ रुडो, ऊंचपणे रे तन दीपतु रे, हाजी, पंचसयां धनुषरो तंत । १. डा० भगवानदास तिवारी-हिन्दी जैन साहित्य, पृ० १४ । २. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२९३ (प्र० सं०) और भाग ५, पृ० ३१ (न० सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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