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________________ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास 'नवतत्व प्रकरण' पर बालावबोध अथवा विवरण की रचना की पर रचनाकाल अज्ञात है। इसमें कहा है----- श्री मत्तपगण भर्त, श्री विजयानंद सूरि राजानं तत्पटेऽलंडुवती सूरिवरे विजयराजाह्वे विबुधवर गुणविजयांतिषदा बुध मानविजय गणि नाम्ना, नवतत्वटबार्थो यं लिखितः स्वान्योपकाराय ।' अर्थात् यह टबार्थ स्व और अन्य के उपकारार्थ मानविजय गणि ने लिखा। (गणि) मानविजय III-आपके गुरु थे तपागच्छ के शांतिविजय । आपने मरुगुर्जर गद्य-पद्य में कई रचनाएँ की हैं । गद्य में आपने 'भवभावना बालावबोध' सं० १७२५ में लिखा। यह गद्यकृति मानविजय दानविजय के आग्रह पर विजयराज सूरि के शासन में की गई। भवभावना के मूल लेखक मलधारी हेमचंद्र सूरि थे । पद्य में आपने कई स्तवन, संञ्झाय और रास लिखे हैं जिनका संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत किया जा रहा है । सुमति कुमति (जिनप्रतिमा) स्तव सं० १७२८ के आसपास रचित है। आदि-श्री जिन प्रतिमा वांदणना, दीस अक्षर प्रगट; समकित ने आलावे ज्यां ज्यां, नहीं काई कपट, इहां रे । अंत--ते माटे आणा प्रमाण, नवि कीजै कुयुक्ति अजांण, बुध शांतिविजय नो सीस, मांच नामे सुगुरुनो सीस । गुरुतत्वप्रकाश रास (१०७ कड़ी, सं० १७३१) आदि-प्रणमु श्री सोहम् गणधार, चतुविह समणसंघ आधार, जस संपति दुपसह गुरु लगई, भरहखित्ति चालइ संलगइ। अंत-सोहम पाट परंपरि आवीउ, विजयाणंद सूरिराय, शांतिविजय बुध बिनयी सुगुरुना, मानविजय गुणगाय । अह गुरु तत्व प्रकाश प्रकाशीउ, विजयराज गुरु राजि, ग्रंथ अनेक नी साखि मुनि मानइ, भविजन बोधन काजि । १. मोहनलाल दलीचंद देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५९१, भाग ३, पृ. १६२९ और भाग ४, पृ० ३६५ (न०सं०) । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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