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________________ ३५८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास इसकी भाषा चिन्त्य और कहीं कहीं भ्रामक है जैसे मनख (मानुष>मनुष्य), सगत (सकति>शक्ति) आदि । इसमें अभिनव छन्द प्रयोग जैसे मोतीदाम का प्रयोग द्रष्टव्य है । विषयवस्तु इसके नाम से ही स्पष्ट हैं--ज्ञानमार्ग से अनंत-अनाम को जानना। इनकी दूसरी रचना संयोग बत्रीसी (सं० १७३१ चैत्र शुक्लषष्ठी) की अंतिम पंक्तियाँ अधोलिखित हैं, रचनाकाल भी है। . संवत चंद समुछ सिवाक्ष शशी युत वर्ष विचारइ तिसी, चैत सिता तसु छट्ठि गिरापति मांन रचियुं संयोग बत्रीसी। कवि ने यह रचना अमरचंद मुनि के आग्रह पर की थी और अपनी पीठ स्वयं ठोकता हुआ कहता है कि इसमें उत्तम उक्तियाँ यथा-अमरचंद मुनी आग्रहैं समर हूइ सरसति, संयम बत्तीसी रची आछी आनि उकत्ति ।' इनकी तीसरी कृति 'सवैयामान बावनी' का केवल नामोल्लेख मिला, कोई विवरण-उद्धरण प्राप्त नहीं हुआ। मानविजय I .. तपागच्छ के जयविजय इनके गुरु थे। इन्होंने नवतत्व रास की रचना सं० १७१८ वैशाख शुक्ल १०, भोपाउर में की इनकी गुरु परंपरा रचना में इस प्रकार बताई गई है-- श्री हरि शीस सुजाणी, गणि कीका गुणखांणी; तसु सीस पंडितराया, बुध जय विजय सवाया । मानविजय तसु सीस, कीधो रास सुविसेस । रचनाकाल संवत सतर अठारइं वैशाख सुदि दशमी सार, श्री शांतीसर सुवसाय, पुर भोपाउर मांहि । १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० २८२; भाग ३, पृ० १२८०-१२८१ तथा १५२४ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० ४५१-४५२ (न० सं०)। २. अगरचन्द नाहटा-परंपरा पृ० १११ । For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org Jain Education International
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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