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________________ मनोहरदास अथवा मनोहर ३४७ थे । ये उच्चकोटि के विद्वान् और कवि थे तथा स्वभाव से अहंकारहीन विनयी व्यक्ति थे। वे अपने सम्बन्ध में कहते हैं-- कविता मनोहर खण्डेलवाल सोनी जाति, मलसंघी मल जाको सांगानेर वास है, कर्म के उदय ते धामपुर में बसत भयौ, सबसों मिलाप पुनि सज्जन को दास है ।' आपकी प्रसिद्ध पुस्तक धर्मपरीक्षा सं० १७०५ धामपुर में ही लिखी गई थी। यह एक व्यंग्यात्मक काव्य है। इसमें पवनवेग और मनोवेग नामक दो मित्रों की कथा है। यह ग्रन्थ आचार्य अमितगति के धर्म परीक्षा नामक संस्कृत ग्रन्थ का ३००० पद्यों में भाषानुवाद है। इसमें दोहा, सोरठा, सवैया, छप्पय आदि मात्रिक छन्दों का प्रयोग किया गया है। अमितगति के मल ग्रन्थ का यह भाषान्तरण है इसके समर्थन में डॉ. प्रेमशंकर जैन ने यह उद्धरण दिया है ---- सुमुनि अमित गति जान सहसकीर्ति पूर्व कही, या मैं बुधि प्रमान भाषा कीनी जोरिकै । जबकि डॉ० लालचन्द जैन ने इसे मुनि मतिसागर विरचित धर्म परीक्षा के आधार पर लिखा बताया है और अपने कथन के समर्थन में निम्न पद्य उद्धृत किया है-- मतिसागर मुनि जान संस्कृत पूर्वहि कही मैं बुद्धिहीन अयान, भाषा कीनी जोरिकै ।२। इन दो पंक्तियों में केवल अंतिम अर्द्धाली भाषा कीनी जोरिक दोनों में समान है, शेष भाग भिन्न-भिन्न है और यह कहना कठिन है कि कौन सा पाठ प्रामाणिक एवं शुद्ध है। प्रथम दृष्ट्या प्रेमसागर जैन द्वारा उद्धृत 'सहसकीर्ति पूर्व कही' के स्थान पर लालचन्द जैन द्वारा उद्धत संस्कृत पर्वहि कही ज्यादा सही लगता है और इसके आधार पर यदि उनके उद्धरण को ठीक माना जाय तो इस रचना का मूल ग्रन्थ अमितगति कृत न होकर मतिसागर कृत धर्मपरीक्षा है। यह कई १. डा० नाथूराम प्रेमी ... हिन्दी जैन साहित्य का इतिहास, पृ० ६७ । २. डा० प्रेमसागर जैन--हिन्दी जैन भक्तिकाव्य और कवि, पु० २२१-२२४ ३. डा० लालचन्द जैन -जैन कवियों के ब्रजभाषा प्रबन्धकाव्यों का अध्ययन पृ० ८९ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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