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________________ भावरत्न कृष्ण २, भौमवार, रूपपुर) का रचनाकाल इन पंकियों में दिया गया है-- अंक अंग अश्वचन्द्र (१७६९) कहीजइं संवच्छर जाणो रे, कार्तिक शद त्रीज मंगलवारे, रास प्रारंभ बखाणो रे, कार्तिक वदि तृतीया भौमवारे, थयो संपूरण रासो रे, मंगल पणमंगल थयो अ, गुरु महिमा प्रसादे रे । यह ग्रंथ रत्नशेषर गणि कृत 'पडिक्कमणा वृत्ति' पर अवलम्बित है। अंबडरास (सं० १७७५ ज्येष्ठ कृष्ण २, रविवार, पाटण) यह चरितकाव्य अंबड और सुलसा संवाद पर आधारित है, यथा-- अंबड नो संबंध भाख्यो, सुलसा धर्म सगाई है, ससनेही । आदि ..श्री महिमा जग विस्तरे, नित जपतां जसु नाम, ते जिन पास ने प्रणमी ओ लहिले वंछित काम । इसमें पूर्णिमागच्छीय विनयप्रभ सूरि से लेकर महिमाप्रभ सूरि तक का गुणगान किया गया है। विनयप्रभ के लिए कवि ने लिखा है-- सकल सिद्धांत पारगामी, सकल नय ना दरिया हे, वैयाकरणे हेम सरीखा, आचार ना गुणभरिया हे। काव्य छन्द अने अलंकारे, पूर्णलक्षण वेत्ता हे, साहि सभा मांहि उपदेसे, निविड़ मिथ्यातना भेत्ता हे। रचनाकाल-- द्रुपदराय तणी जे पुत्री तसपति तिम तुरंगा हे, भेद संयमनाभेला कीधा, संवत जाणो मे चंगा हे । बीसी (सं० १७८०, माधव कृष्ण ७, सोमवार) आदि--श्री सीमंधर साहिबा रे, अतिशय ऋद्धि भण्डार, तीरथंकर पद भोगवइ रे, विहरमान हितकार । अन्त--बिहरमान प्रभु बीस अ, गाथा श्री जिनराय, __ मनोरथ मुझ फल्या। जिनवर च्यार जंबू दीपइ, घातकीइ कहाइ, मनोरथ मुझ फल्या । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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