SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 345
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२८ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का वृहद् इतिहास परंपरा में विद्याप्रभ सूरि>ललितप्रभसूरि7 विनयप्रभसूरि>महिमाप्रभ सूरि के आप शिष्य थे ।' सूरि पद के पूर्व आपका नाम भावरत्न था। आपके पिता का नाम मांडण और माता का बादूला था। यह विवरण इन्होंने कालिदास कृत 'ज्योतिविद्या भरण' पर लिखित 'सुखबोधिका' नामक अपनी संस्कृत टीका की प्रशस्ति में दी है । आप मरुगुर्जर के साथ संस्कृत के भी विद्वान् और सुलेखक थे। आपक यशोविजय कृत 'प्रतिमाशतक' पर सं० १७९३ में संस्कृत टीका लिखी थी । आपके अन्य कई संस्कृत ग्रंथों का विवरण श्री मोहनलाल दलीचंद देसाई कृत जैनसाहित्य नो संक्षिप्त इतिहास में उपलब्ध है। __ भावप्रभसूरि ने मरुगुर्जर में छोटी बड़ी प्रायः एक दर्जन पुस्तकें लिखी हैं जिसमें झाझरिया मुनि की संञ्झाय, हरिबल मच्छी रास, अंबडरास, सुभद्रासती रास, बुद्धिलविमलसती रास और चौबीसी आदि बड़ी रचनाएँ उल्लेखनीय हैं। इनके अलावा इन्होंने कई चौपाइयाँ, संञ्झाय और स्फुट रचनाएँ भी की हैं । कतिपय रचनाओं का विवरण सोदाहरण आगे दिया जा रहा है। झांझरिया मुनि संञ्झाय (चार ढाल सं० १७५६ आषाढ़ कृष्ण द्वितीया, सोमवार) का आदि-- सरसती चरण सीस नमावी, प्रणमुं सद्गुरु पाय रे, झांझरिआ ऋषि ना गुण गांता, ऊलट अंग सवाय रे। भवीजन बांदो मुनि झांझरिया, संसार समुद्र जे तरिया रे, सबल सही परिसह मन शुद्ध, शील रयण करी भरीया रे। रचनाकाल-- संवत १७५६ नां कैरी, आसोज (आषाढ़) बद बीज, सोमवारे संज्झाय ओ कीधी, सांभलतां मन मोद के श्री पुनमगच्छ गुरुराये विराजे, महिमाप्रभ सूरीन्द्र, भावरत्न शिष्य भणे इम, सांभलतां आनंद के । यह रचना जैन संज्झाय संग्रह (साराभाई नवाब) और जैन संज्झाय माला (बालाभाई शाह) नामक संग्रह ग्रन्थों में प्रकाशित हो चुकी है। हरिबल मच्छी रास (३३ ढाल, ८४९ कड़ी, सं० १७६९ कार्तिक १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग ५, पृ० १६५-१७९ (न०सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy