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________________ ३२० मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास सुबुद्धि के अथाह से सुरिद्ध पातशाह से, सुमन के सनाह से महा बड़े महन्त हैं । सुध्यान के धरैया से सुज्ञान के करैया से, सुप्राण परखैया से शक्ती अनन्त हैं, सबै संघनायक से सबै बोललायक से, सबै सुखदायक से सम्यक के संत हैं। चेतन कर्म चरित्र- ब्रह्मविलास में संकलित ६७ रचनाओं में यह विशिष्ट रचना है। यह उक्त संकलन के पृ० ५५ से ८४ पर संकलित है। मोहनलाल दलीचन्द देसाई ने इसका रचनाकाल सं० १७३२ बताया है जिसका आधार ये पंक्तियाँ हैं--- संवत सत्रह सै बतीसइ, ज्येष्ठ सप्तमी आदि, श्री गुरुवार सुहावनों, रचना कहीं अनादि ।' लेकिन संकलन के पृष्ठ ८४ पर छपे पद्य २९६ में रचनाकाल १७३६ बताया गया है। इस भेद का कारण पाठभेद हो सकता है। इसमें चेतन और कर्म जैसे अमूर्त तत्वों का मूर्तीकरण करके उनका चरित्रांकन किया गया है । आत्म स्वतन्त्रता का अभिलाषी चेतन कर्म बन्धनों से मुक्त होकर ही मुक्तिलाभ करता है इसलिए कवि कहता है ज्ञान दरस चारित भण्डार, तू सिवनायक तू सिवसार, तू सब कर्म जीत सिव होय, तेरी महिमा बरनै कोय । (पद्य संख्या २९१ पृ० ८४) इस रूपक काव्य में आत्मा के वास्तविक स्वरूप पर कल्पना द्वारा रमणीय प्रकाश डाला गया है। यह वीररसात्मक काव्य अंततः शांत में पर्यवसित होता है । रचना दोहा चौपाई छन्द में है, बीच बीच में सोरठा, पद्धरी, करिरना और मरहण आदि छन्दों का भी प्रयोग किया गया है। इसकी व्रजभाषा में खड़ी बोली का पुट मिला हुआ है । कथ्य में कहीं कहीं दार्शनिक दुरूहता द्रष्टव्य है, यथा-- १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई--जैन गुर्जर कवियो, भाग ३, पृ० १२७९ (प्र० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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