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पद्मसुन्दरगणि
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पद्मसुन्दर गणि-आप वृद्धतपागच्छ के धनरत्नसूरि7 अमरत्नसूरि7 देवरत्नसूरि7 उपा० राजसुन्दर के शिष्य थे। आपने सं० १७०७ और १७३४ के बीच किसी समय 'भगवती सूत्र पर बालावबोध अथवा स्तबुक या विवरण' रचा, जिसे अत्यन्त सुन्दर अर्थ वाला टब्बा भी कहा जाता है । इसकी प्रारम्भिक पक्ति अनलिखित है
प्रणम्य श्री महावीर गौतम गणनायक,
श्रुतदेवी प्रसादेन मया हि स्तबुकं कृतः।' इसमें वृद्धतपागच्छीय धनरत्न, अमररत्न, देवरत्न, जयरत्व, भुवनकीर्ति, रत्नकीर्ति और देवरत्न सूरि के शिष्य राजसुंदर गणि को गुरु स्वरूप नमन किया गया है। इसके आदि और अन्त की पंक्तियाँ प्राप्त हैं जो संस्कृत में है किन्तु गद्य का नमूना नहीं प्राप्त हो सका है। इसलिए मरुगुर्जर गद्य भाषा का नमूना नहीं मिल सका।
पदो -ये दिगम्बर साधु विनयचंद के शिष्य थे। आपने ध्यानामृत रास की रचना सं० १७५८ से पूर्व किसी समय १८वीं शती में ही की थी। इस रास में कवि पद्मो ने शुभचन्द्र सूरि और मुनि विनयचंद्र की वंदना की है। यह रचना कवि ने ब्रह्म करमसी की सहायता से की थी, तदर्थ कवि ने उनका आभार स्वीकार किया है। इसकी प्रारम्भिक पंक्तियाँ निम्नांकित हैं
सकल जिनेश्वर पद नमू, गुण छेतालीस धार,
चुत्रीस अतिशय प्रतिहार्य अष्ट, अनन्त चतुष्टय च्यार । इसमें लेखक ने रचनाकाल नहीं दिया है किन्तु प्रतिलिपि सं० १७५८ की प्राप्त होने से उसके कुछ पूर्व ही रचना का अनुमान होता है । रास का सारांश इस 'वस्तु' में वर्णित है ---
रास कियो मि रास कियो मि ध्यान तणो मनोहार, ध्यान तणा गुण वर्णव्या, ध्यानी जनमनरंजन निर्मल, पंच परमेष्टी मन धरी सारदे सामिनी गुरु निग्रंथ उज्वल ।
१. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गर्जर कवियो, भाग १, प० ६०३,
भाग ३, पृ० १६३४-३५ (प्र०सं०) और भाग ४, पृ० १६३ (न०सं०)
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