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________________ २८६ मरुगुर्जर हिन्दी जैन साहित्य का बृहद् इतिहास दूसरी चौबीसी की प्रथम पंक्ति इस प्रकार है-- जग उपकारी रे साहिब माहरो रे, अतिशय गुणमणिधाम । बीशी (बिहरमान जिन) का आदि (राग विहाग में) कहेजो वंदन जाय, दधिसुत कहेजो वंदन जाय । न्यायसार दास को प्रभु, कीजिये सुपसाय । दधिसुत ।' यह भी चौबीसी बीसी संग्रह पृ० ७३८-४८ पर प्रकाशित है। इन स्तवन और स्तुति-वंदनाओं के अलावा आपकी एक छोटी कृति वार व्रत रास अथवा संज्झाय सं० १७८४ दीपावली पर लिखित उपलब्ध है। पद्म--सुन्दर के शिष्य थे। एक सुन्दर लोंकागच्छ के हो गये हैं जिन्होंने १७९१ में नेमराजुल ना नवभव संज्झाय लिखी है जिनकी चर्चा आगे की जायेगी। सम्भवतः ये वहीं सुन्दर हों। पद्म ने नववाड संज्झाय सं० १७९९ आसो शुक्ल १५ रविवार को सूरत में पूर्ण किया था । इसके मंगलाचरण की प्रारम्भिक पंक्तियाँ प्रस्तुत हैं-- अनंत चोबीसी जिन नमुं, श्रुत देवी चीत लाय; नववीधि वाडि बखांणतां, मनमां बसीयो माय । नेमि की वंदना में कवि लिखता है-- नमीई नेम जिणेसरु ब्रह्मचारी भगवान । सुन्दर अपसर सारखी, रूपवतीमां रेह, योवनमा युवती तजी, राजुल गुणनी गेह । अन्त-- भणे गुणे जे सांभले रे, ते घर कोडि कल्याण रे, सील तणा सुपसाय थी हो लाल । पद्म परम रिद्धि पांमस्यो रे, सील थी चतुर सुजांण रे, निधि नव संवत सायर ससी हो लाल । आसो सुदि पूनिम दिने रे, रवी अश्वनी ऋषिराय रे, १. मोहनलाल दलीचन्द देसाई-जैन गुर्जर कवियो, भाग २, पृ० ५४२-४६ और भाग ३, पृ० १४४०-४१ (प्र०सं०) तथा भाग ५, पृ० २५९-२६४ (न० सं०)। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002092
Book TitleHindi Jain Sahitya ka Bruhad Itihas Part 3
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShitikanth Mishr
PublisherParshwanath Shodhpith Varanasi
Publication Year1997
Total Pages618
LanguageHindi, MaruGurjar
ClassificationBook_Devnagari, History, & Literature
File Size23 MB
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